जरूरी सीख

माना कि बच्चों को समझाना आसान नहीं होता, लेकिन उतना मुश्किल भी नहीं होता जितना हम समझते हैं बस जरूरत है धैर्य और विश्वास धरने की, अपने बच्चों पर भी और स्वयं पर भी।

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Shilpi Goel
Shilpi Goel 23 Dec, 2021 | 1 min read
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"मम्मी आपको पता है साहिल भैय्या के पास तरह-तरह के खिलौने हैं", छोटे से नीशू ने आँखे चौड़ी करते हुए कहा।

"उन्हें तो पार्क में खेलने जाने की भी जरूरत नहीं है, बुआ जी ने घर पर ही पार्क बना रखा है और साथ में स्विमिंग पूल भी।"

"मुझे तो इन छुट्टियों में बड़ा ही मज़ा आया बुआ के यहाँ जाकर। आप तो मुझे कोई भी नया खिलौना नहीं दिलाते, जब देखो तब बोलते हो जाओ पार्क जाकर अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलो।"

"मैं कब से बास्केटबॉल माँग रहा हूँ, पापा ने मुझे जन्मदिन पर दिलाने का प्रॉमिस भी किया था लेकिन फिर भी नहीं दिलाया।"

"मेरा तो दिल करता है, मैं बुआ के घर ही जाकर रहूँ।"

आठ साल का नीशू बिना रुके बस बोलता ही जा रहा था और सीमा बड़े ध्यान से उसकी सब बातें सुन रही थी।

दरअसल नीशू गर्मी की स्कूल की छुट्टियों में अपनी बुआ के यहाँ रहकर आया था और तब से वहीं की बातें किए जा रहा था कि बुआ के यहाँ ऐसे है, बुआ के वहाँ यह चीज़ है।

नीशू की बुआ साहिल का जब दिल करता तब ही बाहर का खाना जैसे बर्गर, पिज्जा सब मंगवाकर दे देती बिना किसी ना नुकुर के जबकि सीमा नीशू को जो चाहिए होता घर पर ही बनाकर खिलाती थी।

सीमा चाहती तो थी नीशू को समझाना पर वो जानती थी कि एक आठ साल के बच्चे को वो कितना भी समझा ले लेकिन ऐसे समझा नहीं पाएगी।

धीरे-धीरे नीशू की परीक्षा नजदीक आ गई और वो पढ़ाई में लग गया।

राहुल(नीशू के पापा) को लगा कि नीशू सब भूल गया लेकिन सीमा जानती थी कि बच्चा कभी ऐसी बातों को नहीं भूलता। बस वो तरीका ढूँढ रही थी उसे समझाने का, क्योंकि डाँट कर समझाना किसी समस्या का समाधान नही होता।

एक रात अचानक नीशू की बुआ का फोन आया, बड़ा घबराई हुई थी, साहिल की अचानक तबियत जो खराब हो गई थी।

नीशू, सीमा और राहुल फटाफट वहाँ जाने के लिए निकल पड़े, वहाँ जाकर पता चला कि हमेशा बाहर का खाना खाने और पूरा दिन घर पर ही बिताने के कारण, साहिल की पाचन क्रिया खराब हो गई थी, इसलिए उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।

डॉक्टर ने कहा, बच्चों को घर पर बांध कर रखना कोई समझदारी नहीं, बाहर जाकर खेलने से ही हमारे शरीर को मजबूती प्राप्त होती है और घर का बना पौष्टिक खाना खाने से हम कम बीमार पड़ते हैं।

डॉक्टर की यह सब बातें वहाँ खड़ा नीशू बड़ा ध्यान लगाकर सुन रहा था। अब नीशू को समझ आ गया था कि क्यों उसके माता-पिता उसके खान-पान की तरफ इतनी एहतियात बरतते हैं और हमेशा उससे बाहर जाकर खेलने को बोलते हैं।

अब से नीशू ने बेफिजूल की जिद्द बंद करकर समझदार बच्चों की तरह बर्ताव करना शुरु कर दिया था।

तब सीमा ने नीशू से कहा कि, "बेटा ऐसा नहीं है कि हम आपको खिलौने नहीं दिलाना चाहते लेकिन जरूरत से ज्यादा कोई भी वस्तु मिलने से उसकी कद्र कम हो जाती है, हमें अपनी जरूरत अनुसार ही किसी भी वस्तु को खरीदना चाहिए फिर चाहे वो आपके खिलौने हैं या कोई अन्य वस्तु।"

"और रही बात घर पर रहकर या बाहर जाकर खेलने कि तो जब तक आप किसी से मिलोगे नहीं तो नये-नये दोस्त कैसे बनाओगे और दोस्त नहीं होंगे तो किस की जन्मदिन पार्टी में जाकर धमाल मचाओगे", सीमा ने नीशू की नाक प्यार से खींचते हुए कहा।

नीशू ने भी फिर हँसते हुए कहा, "मम्मी मैं आपकी सब बातें समझ गया और अब से आपका सब कहना भी मानूँगा, अब मैं जाऊँ अपने दोस्तों के पास खेलने।"

सीमा ने मुस्कराते हुए उसे जाने की इज़ाजत दे दी।

नीशू में आया यह बदलाव देखकर सीमा और राहुल बहुत खुश थे।

✍शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)

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