कभी-कभी

यूँ ही कभी-कभी......

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Shilpi Goel
Shilpi Goel 06 Jun, 2022 | 1 min read
Feelings hindi poetry

कभी-कभी 

भीतर के 

सब जज़्बात 

बाहर उमेड़ देने को 

दिल करता है

लेकिन 

किससे कहूँ 

यह सोच कर 

मन सब्र कर लेता है

जो अपने हैं वो

मुझे उदास 

सहन नहीं कर पाएँगे

पराए तो सिर्फ 

खिल्ली ही उड़ाएँगे

कहाँ से लाऊँ

वो अपना

जिसमें सहनशीलता के 

संग-संग 

मुझे समझने की 

परख भरी हो

जो मेरी 

उदासी को 

खुशी में नहीं 

मेरे मन के

भारी हिस्से को

थोड़ा हल्के में 

बदल दे 

और

एक सुकून की नींद 

आकर घेर ले मुझे

जब जागूँ नींद से

तो मन शांत हो ऐसे 

जैसे

एक नन्हा बालक 

शांत हो जाता है

जिद्द पूरी हो जाने पर

जैसे

पूरी दुनिया की खुशी

मिल गयी हो उसे।

©️ शिल्पी गोयल

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