अभ्यासः परमः गुरुः

सत्यम् कथा(सच्ची कहानी)

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Shilpi Goel
Shilpi Goel 24 Mar, 2021 | 1 min read
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एकदा बोपदेवः नाम एकः मन्दमतिः छात्रः आसीत्। सः यत् पठति तत् विस्मरित स्म। तस्य सहपाठिनः तस्य उपहास कुर्वन्ति स्म। एकदा तस्य गुरुः क्रुद्धः भूत्वा तम् विद्यालय बहिः करोति स्म। आत्मसम्मानेन वञ्चितः सः चिन्तयति स्म- 'नूनम् अहं मूर्खः अस्मि, मम भाग्ये विद्या नास्ति।'

सः दुखितः सन् यत्र तत्र अश्रमत्। एकदा सः मार्गे एकम् कूपम् अपश्यत्। तत्र स्त्रियः जलेन घटान् पूरयन्ति स्म। तत्र स्थित्वा सः विस्मितः पश्यति-यस्यां शिलायां महिलाः घटं स्थापयन्ति तत्र एकः गर्तः भवति। एतत् दृष्ट्वा सः विचारयति-यदि घटेन शिलाखण्डे गर्तः भवति तर्हि पुनः अभ्यास मम बुद्धिः अपि तीव्रा भविष्यति।

एतत् विचार्य सः पुनः विद्यालयाय निश्चयम् अकरोत्। दत्तचित्तः भूत्वा सः परिश्रमेण अपठत्। एवं कालेन सः सहपाठिनां समादरं गुरूजनानां च स्नेहं लब्धवा सन्तोषम् अविन्दत्। एवः महान् पंडितः लघुसिद्धान्त कौमुदीनामकं संस्कृतव्याकरणस्य पुस्तकम् अरचयत्। अनन्तरं सः वरदराजः इति अभिधानेन विख्यातः अभवत्।

"सत्यमेव कथितम्- अभ्यासः परमः गुरुः।"


हिन्दी अनुवाद-

एक बार बोपदेव नाम का एक मंदबुद्धि लड़का था। वह जो कुछ भी पढ़ता था फिर से भूल जाता था। उसके सब मित्र उसका मज़ाक बनाते रहते थे। कभी कभार गुरुजी भी उसे कक्षा से बाहर निकाल देते थे। कक्षा से निकाले जाने पर वह सोचने लगा कि,'मैं कितना बड़ा मूर्ख हूँ, मेरे भाग्य में विद्या है ही नहीं शायद।'

वह दुखी होकर इधर-उधर घूमने लगा। उसे रास्ते में एक कुआँ दिखाई पड़ा, वहाँ पर औरतें कुएं से पानी निकाल रही थी। उसने देखा बार-बार पानी निकालने की वजह से कुएं की शिला(पत्थर) पर बहुत गहरे निशान हो गए थे। यह सब देखकर उसके मन में विचार आया कि, यदि बार-बार प्रयास करने से शिला(पत्थर) पर भी निशान पड़ सकते हैं तो बार-बार प्रयास करने से मेरी बुद्धि भी तो भविष्य में तेज हो सकती है।

ऐसा विचार आते ही उसने दोबारा विद्यालय जाने का निश्चय किया। वह पहले से अधिक परिश्रम करने लगा। उसके परिश्रम से प्रभावित होकर उसके मित्र और गुरुजी भी उससे प्रसन्न रहने लगे। बड़ा होकर वह बच्चा महान विद्वान बना तथा उसने "लघुसिद्धान्तकौमुदी" नामक संस्कृत व्याकरण की पुस्तक का सृजन किया। उसके पश्चात वह बच्चा वरदराज नाम से विख्यात हो गया।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा प्रयासरत रहना चाहिए, प्रयास करने से ही हमें सफलता हासिल होती है।

इसलिए सच ही कहा गया है कि," अभ्यास ही सबसे बड़ा शिक्षक है।"


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