जहाँ एक ओर मनुष्यों के समूह को देखकर मन घबरा सा जाता है, दिल करता है इनसे कहीं दूर भाग जाएँ और किसी एकांत स्थान पर खुली और ताजी हवा में समय बिताएँ।
वहीं दूसरी ओर वृक्षों के समूह को देखकर मन प्रसन्न और आनन्दित हो उठता है, दिल करता है कुछ क्षण बस वहीं थम जाएँ और अपना सारा जीवन वहीं व्यतीत कर पाएँ।
जब हमें प्राकृतिक वातावरण इतना सुहाता है तो क्यों नहीं इसे बचाने का प्रयास करते?
क्यों स्वयं ही इसके शत्रु बने बैठे हैैं हम?
यह प्रश्न कौंधते हैं दिल और दिमाग को।
"सुन्दर-सुन्दर वन,
हरे-भरे वृक्ष,
फल-फूलों से लदी डालियाँ,
इनकी सुगंध से महकता पर्यावरण,
डालियों पर बैठे पक्षियों का कलरव"
सबकुछ कितना सुकून प्रदान करता है।
प्राकृतिक ध्वनियाँ ना केवल मन को सुकून और शुद्धता प्रदान करती हैं बल्कि हमारे जीवन की नीरसता को दूर कर सरसता से परिपूर्ण करती हैं।
प्रकृति के संग चलने के लिए मनुष्य का अनुशासन में रहना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि प्रकृति स्वयं अनुशासित है और हमें भी यही शिक्षा प्रदान करती है।
जिस प्रकार हर ऋतु अपने चक्रानुक्रम का पालन करती है, वह प्राकृतिक अनुशासन ही तो है जिसे मनुष्य ने छेड़ दिया है वर्ना हमने कभी ग्रीष्मकाल में वर्षा ऋतु का आगमन देखा है।
यह बेमौसम क्रिया ही विनाश का कारक बनती है, प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन कर मनुष्य स्वयं ही विनाश की ओर अग्रसर होता जा रहा है।
प्रकृति हमें वही लौटाती है जो हम उसे देते हैं, वह कभी कोई स्थान रिक्त नहीं छोड़ती। अगर पर्यावरण बचाना है तो प्रकृति के हर नियम का कठोरता से पालन करना होगा। अगर बलपूर्वक विजय प्राप्त करना चाहेंगे तो सिर्फ आपदाओं का ही सामना करना पड़ेगा।
जिस प्रकार समुद्र की विशाल लहरें चट्टानों से टकराकर वापिस समुद्र में समाहित हो जाती हैं तथा चट्टानों का बाल भी बांका नहीं हो पाता, हमें भी उन्हीं चट्टानों की तरह दृढ़ होकर पर्यावरण की रक्षा करनी होगी। जब हर परिस्थिति का हम धैर्य पूर्वक सामना करेंगे तो सफलता अवश्य ही प्राप्त होगी।
पर्यावरण को खुशहाल बनाने हेतु दिया गया प्रकृति का संदेश समझाने का प्रयास करती कुछ पंक्तियाँ-
मिलजुल कर हम-तुम लेते हैं यह प्रण,
महकता रहे सदा अपना यह पर्यावरण।
जंगल,झरने,पर्वत और उपवन सारे,
कहलाते हैं यहाँ सब मित्र हमारे।
समझ लो इस क्षण मेरी यह बात,
इन्हीं से धरा पर होती जीवन की शुरुआत।
मूक पशु और पक्षी हैं जो सारे,
बैर नहीं तुम करो उनसे प्यारे।
चाहते हो अगर बचाना जीवन,
तो बचाना होगा अपना पर्यावरण।
हरा-भरा तुम्हें इसको रखना है,
फले-फूले बस यही एक सपना है।
सुन्दर-सलोनी सी धरा सज उठती है,
लहलहाते खेतों पर जब किरणें पड़ती है।
ओढ़कर धानी रंग की चुनरी,
झूम उठती यह ध्यान बावरी।
कल-कल करती बहती नदियाँ,
सहन करती जाने कितनी त्रासदियाँ।
समय-समय पर करकर इसको जल प्रदान,
देना होगा स्वयं और इन सबको जीवन दान।
स्वच्छता का ख्याल हमें रखना होगा,
वर्ना पर्यावरण बचाना बस एक सपना होगा।
सबसे शक्तिशाली शत्रु है प्रदूषण,
बचाओ इससे अपना पर्यावरण।
प्रकृति के संदेश को सुनिए और उसे समझने का प्रयत्न कीजिए क्योंकि प्रकृति किसी के साथ पक्षपात नहीं करती, सबके साथ समान व्यवहार करती है। प्रकृति हमारे लिए कभी विकृत नहीं हो सकती बस हमें प्रकृति के साथ उसके पद-चिन्हों पर चलना होगा हमेशा।
"मैंने और मेरे परिवार ने प्रण लिया है इस पर्यावरण दिवस पर प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करने की और जितना भी प्लास्टिक हमारे घर पर उपलब्ध था उसे दोबारा इस्तेमाल करने की। हमने उनसे कुछ घरेलु सामान जैसे पेंसिल स्टैंड, चम्मच स्टैंड और कुछ गमले बनाने का प्रयास किया।
नये पौधे लगाकर अपने पर्यावरण को हरा-भरा रखने की चेष्टा की तथा अपने बच्चों को पेड़-पौधों की अहमियत समझाई।"
हर साल फिर मनाएंगे एकजुटता से पर्यावरण दिवस, बस एक बार रोक तो दो आओ मिलकर प्रकृति पर होने वाला यह सितम।
धन्यवाद।
शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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