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Loneliness in the digital world...

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Shilpa Mehta
Shilpa Mehta 30 May, 2022 | 1 min read

जब लॉकडाउन हुआ तो रोहन ने बेंगलुरु छोड़कर अपने माता पिता के पास जयपुर आना बेहतर समझा ।इतने लंबे समय बाद वह अपने घर पर कब रहा उसे याद नहीं आ रहा था। दसवीं के बाद इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए कोटा गया, फिर पढ़ाई के लिए मुंबई और फिर नौकरी के लिए बेंगलुरु।सालों से घर से माता-पिता से उसका औपचारिकता नाता रह गया है। जब घर आया तो शुरू शुरू में मां ने बहुत खातिर की फिर धीरे-धीरे सब एक रूटीन हो गया। उसका कमरा, उसके कमरे में लगी हुई बालकनी बस यही हिस्सा उसे अपना लगता था। पिता के बैंक में होने के कारण उनका हर 3-4 साल में ट्रांसफर हो जाता था ।आखिर में अपने शहर में घर बनाया जहां उनके रिश्तेदार भी रहते थे ।वो कहते हैं ना कितना भी भटक लो, पर सुकून अपनों के बीच में ही मिलता है। पर ना जाने क्यों रोहन को सुकून नहीं मिल रहा था।

पहले तो अलग-अलग शहर में रहने के कारण किसी से जुड़ाव नही हुआ उसका, फिर पढ़ाई, कैरियर संवारने में जिंदगी निकल गयी। उसके बाद Bangalore जैसे शहर में नौकरी। परिवार, रिश्तों का मोल किसी ने नहीं सिखाया उसे। कभी किसी शादी या कार्यक्रम में घर जाना होता पापा मम्मी अकेले जाते, reason ये होता कि उसकी पढ़ाई खराब होगी। उसके मां पापा देख ये नहीं पाए कि जीवन की पढ़ाई में रिश्तों की अंकसूची में उसके नम्बर लगातार कम होते जा रहे हैंउसकी सुबह पापा के जाने के बाद होती थी। तैयार होकर नाश्ता करते हुए मां की बातों का हाँ हूँ में जवाब देकर वह कमरे में भाग आता है। फिर सारा समय वहीं गुजरता है। शुरू-शुरू में माँ बैठी रहती थी कि साथ मे खाना खाएंगे, फिर उसका routine देख वो भी थाली ढँक कर रख देती हैं। महीनों हो गए उसे सब के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए। रात में पापा से हल्की फुल्की बातचीत होती है।

 सारा दिन कमरे में बन्द वो लेपटॉप पर लगा रहता है। माँ को लगता है वो वर्क फ्रॉम होम कर रहा है। पर वो कैसे बताए कि उसकी नौकरी है या नहीं उसे ही नहीं पता है। लॉक डाउन के बाद कुछ महीने तो आधी तनख्वाह पर काम किया, फिर कम्पनी ने नोटिस दे दिया कि जिनको काम करना है घर से करें, लेकिन पगार मिलने की गारंटी नहीं है। अभी कम्पनी की हालत खराब है ठीक होने के बाद फिर देखा जाएगा। 1-2 महीने यूँ ही बीत गए।  उसने नई नौकरी की तलाश शुरू कर दी। लेकिन इस मुश्किल दौर में नई नौकरी मिलना आसान तो नहीं। आज तक ऐसा ही चल रहा है। रोज किसी नई जगह पर आवेदन या इंटरव्यू। पर मिलती सिर्फ हताशा।

रात में जब सब सो जाते हैं वो बाहर आकर बैठा रहता है। कमरे में बिखरा हुआ अंधेरा उसे अपना सा लगता है। बन्द टीवी में नाईट लेम्प की परछाई उसे उम्मीद की किरण सी नजर आती है। ये घर उसे लेपटॉप के एक फोल्डर सा लगता जहां खूब सी फाइलें हैं ,पर सब अलग-अलग रहती हैं। कम्प्यूटर के सॉफ्टवेयर बनाते हुए जीवन के जरूरी हार्डवेयर से कब नाता छूट गया ,उसे समझ ही नहीं आया। ये सोचकर रोहन परेशान है कि कब तक ऐसे चलेगा।

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Shilpa Mehta

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Dr Shakuntla Jain · 1 year ago last edited 1 year ago

    Marvellous Shilpa. Very nice n proper use of lock down period. Dr Shakuntla Jain

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