औरत

Originally published in hi
Reactions 0
523
Shelly Gupta
Shelly Gupta 16 Nov, 2019 | 1 min read

"नहीं अब और नहीं। नहीं जीना मुझे इन मुखौटों में कैद होकर।"

"जब से पैदा हुई, इन मुखौटों के साथ ही हुई - एक बेटी का मुखौटा, एक बहन का मुखौटा और जब बड़ी हुई तब नए मूखौटों में छुप गई - एक पत्नी ,एक बहू, एक भाभी,और मां। और भी ना जाने कितने मुखौटें हैं, अब तो गिनती भी नहीं कर पा रही इनकी।"

"पर अब बहुत हो गया। अब मैं इन के पीछे नहीं छुपुंगी। उतार फेकुंगी सब मुखौटे और खुद को ढूंढकर खुद की ज़िन्दगी जीउंगी।"

"उफ्फ, ये मुखौटे तो उतर ही नहीं रहे। लगता है जैसे मैंने इन्हे आत्मसात कर लिया है। बस कुछ कुछ जगह से खुरच ही पाई हूं इन्हें। अब क्या करूं मैं?"

"कोई बात नहीं। मैं एक औरत हूं। ईश्वर की बनाई सबसे महान कृति। मुझे जरूरत नहीं इन मुखौटों को पूरी तरह उतार फेंकने की।मुझे दी है ईश्वर ने इतनी ताकत की मैं इन खुरचन के पीछे से झांकते हुए भी अपनी पूरी पहचान बना सकूं।"

0 likes

Published By

Shelly Gupta

shelly

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.