मेरी लक्ष्मी

Originally published in hi
Reactions 0
483
Shelly Gupta
Shelly Gupta 14 Nov, 2019 | 0 mins read

प्रीति के हाथ दोगुनी तेज़ी से चल रहे थे। पंडित जी के आने से पहले हवन कि सारी तैयारियां करना, सब मेहमानों के लिए खाने पीने का इंतजाम करना, बीच बीच में बच्चों को संभालना सब चल रहा था। तभी पंडित जी भी आ गए ।

ये तो अच्छा था कि हवन से दो दिन पहले ही बुआजी आ गई थी तो उसे कुछ हौसला हुआ कि बुआजी सब अच्छे से समझा देंगी। पर बुआजी से उसे बड़ा डर भी लगता था क्योंकि ज़ुबान की वो बहुत तेज़ थी। प्रीति के सास ससुर नहीं थे तो प्रीति और उसके पति मोहित के लिए घर की बुज़ुर्ग वही थी।

पंडित जी ने पूजा की तैयारियां शुरू कर दी और इतने में ही मोहित के ऑफिस से जरूरी फोन आ गया। वो प्रीति को ये बोलकर कि कोई उसे 20 मिनट तक आवाज़ ना लगाए और दूसरे कमरे में चला गया और प्रीति पंडित जी के कहे अनुसार उन्हें सारा सामान पकड़ाने लगी।

तभी पंडित जी ने एक थाली पर 100 रुपए रखने को कहा। अंदर जाकर अपने पर्स से लाने की बजाय प्रीति ने वहीं बुआजी के पास रखे मोहित के पर्स को उठाया और उसमें से रुपए निकालकर पंडित जी को दे दिए।

तभी मोहित भी कॉल ख़तम करके आ गया। अचानक से बुआजी बोली," मोहित प्रीति ने तेरे पर्स से रुपए निकालकर पंडित जी को दिए हैं।"

प्रीति का मुंह सब मेहमानों के बीच ये सुनकर अपमान से लाल हो गया लेकिन वो कुछ बोली नहीं। मोहित अपनी बुआजी को अच्छे से जानता था। उसने हंसते हुए अपना पर्स उठाया और प्रीति के हाथ में देते हुए बोला," यही तो मेरी लक्ष्मी है बुआजी, सब इसी के कारण है। आपने मेरे लिए इतना अच्छा जीवनसाथी चुना कि आपके जितने भी पैर दबाऊं उतना कम है।"

सब लोग मोहित की बात सुनकर हंस पड़े। बुआजी ने भी फट से अपने दोनों पैर मोहित के आगे कर दिए दबवाने के लिए और प्रीति को लगा जैसे आज मोहित ने उसे सारा आसमान दे दिया।

0 likes

Published By

Shelly Gupta

shelly

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.