अधूरी मोहब्बत।

बरसों बाद मिली डायरी क्या बदल देगी मीरा की जिंदगी।

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Shalini Narayana
Shalini Narayana 09 Sep, 2020 | 1 min read

नये घर में सामान बिखरा पड़ा है, एक शहर से दूसरे शहर में शिफ्ट होना किसी सज़ा से कम नहीं| सब कुछ नये सिरे से शुरू करना पड़ता है| नयी जगह की अच्छी बात ये है कि इस घर में एक सुंदर सा बागीचा है पीछे की तरफ, आम के पेड़ से लटकता एक झूला है और सुंदर सुंदर फूलों के पौधे हैं| 10 साल माचिस की डिबियों जैसे अपार्टमेंट में रह रहकर खुलेपन का अहसास पूरी तरह खत्म हो चुका था| अचानक से इतनी खूबसूरती और खुला माहौल मन को अंदर तक ताज़ा कर गया| घर समेटने का सिलसिला बीच में रोककर मैं पीछे बागीचे में कुर्सी डाल कर बैठ गई सुस्ताने के लिए|

शाम के 5 बज रहे होंगे ठंडी हवा पत्तों को गुदगुदा रही थी और पत्तों की खिलखिलाहट मुझे स्पष्ट सुनाई दे रही थी | बहुत ही सुहाना मौसम हो गया| मैं नज़रें इधर उधर घुुुमा कर देख रही थी के नजर एक बक्से पे जा टिकी| ये क्या हैं? सोचते हुए मैं ने बॉक्स खोला तो उसमें बहुत सारी किताबें रखी हुई थीं| देखने में बहुत पुरानी थी और धूल से सनी हुई मानो बरसों से किसी ने उस बक्से को खोल के नहीं देखा| शायद पुराने किरायदार की है| मेरा मन करने लगा मैं ज़रा खोल के देखूं क्या किताबें हैं| मैं ने धूल साफ कर के टटोलना शुरू किया| एक डायरी मिली,जानती हूं किसी की डायरी पढ़ना गलत है पर मन भी चंचल है जो नहीं करना चाहिए वहीं करने को भागता है.. कुछ पन्ने पलटें तो उनमें कुछ सूखे फूल मिले,कुछ पंक्तियां ,अधूरी लाईनें, डायरी के पन्ने सारे पीले पड़ गये पर मोहब्बत की खुशबू बिल्कुल ताज़ा लगी| किसी की पर्सनल डायरी है मन की बातें साझा की गई है उसमें| किसी मोहब्बत में डूबे हुए बंदे की डायरी है,जो बेइंतहा किसी से मोहब्बत करता था पर इजाहर नहीं किया,शायद कुछ मजबूरी रही होगी| मैं पढ़ने लगी, मुझे काफ़ी दिलचस्प भी लगी|

6/9/90 10:30pm

मैं उससे मोहब्बत इसलिए नहीं करता कि वो खूबसूरत है इसलिए करता हूं कि उसमें जो ठहराव है, वो मुझे सुकून देता है| उसका साथ होना या न होना मायने नहीं रखता मायने रखता है उसका मुझसे बिन बात किए ही मुझे महसूस कर लेना और समझ लेना|

25/9/90 1:05am

उसकी ख़ामोशी अक्सर बातें करती है मुझसे उसकी आंखें बताती है उसका हाल,एक गहराई है उसकी आंखों में, जितना डूबू उतना सूकून मिलता है| उसका शर्माना मेरे दिल का हाल बदल देता है| नाराज़ होती है तो आंखों में काजल नहीं लगाती है वो| चूड़ियां और पाजेब उसकी अनकही बातें कह देते हैं मुझसे|

5/10/90 12:40 am

कभी कहा नहीं उससे, सिर्फ देखा है दूर से और गौर से|

11/10/90 5:00am

अक्सर लोगों को कहते सुना है के कुछ किस्से जिन्हें हम अंजाम तक नहीं ले जा सकते उसे बस खूबसूरत मोड़ पे छोड़ देना अच्छा है| जरूरी नहीं हर चीज मुकम्मल हो| कुछ अधूरा पन भी जरूरी है मन बहलाने के लिए| इश्क की बुलंदियों में गुफ्तगू मायने नहीं रखती,ये इशारों में बयान होती है| जहां खामोशी इशारे,और अहसास अल्फाज़ बन जाते हैं| शायद मेरे लिए उसका पाना जरूरी नहीं उसका होना ही काफी है |

मैं पन्ने पलटती जा रही थी ...अब पत्तों की सरसराहट से ज्यादा पन्नो की आवाज आ रही थी |

पर ये क्या ये सारे अहसास मुझे अचानक से अपने क्यों लगने लगे, जैसे डायरी के किरदार मैं और जयंत हो| ये सारी बातें , जज़्बात सब कुछ जैसे मैं गुजरी हूं इन सब से| मैं पन्ने जल्दी जल्दी पलटने लगी इस उम्मीद के साथ के कहीं तो मेरे नाम का जिक्र होगा या जयंत का नाम कहीं तो लिखा होगा| मैं बौखलाई सी सारी किताबें और डायरी के सारे पन्ने ढूंढने लगी| मानो कुछ खोया हुआ फिर पाने की कोशिश कर रही हूं|

अचानक पीछे से रवि ने आवाज लगाई "मीरा कहां हो भई?? "उनकी आवाज मुझे वर्तमान में ले आई मैंने अपने को संयमित करते हुए कहा " यहां !! पीछे बागीचे में| "

रवि गरम समोसे और जलेबियां लाए थे| मैं अंदर रसोई से प्लेट लेकर आई और हम बातें करने लगे रवि को बक्से के बारे में बताया और उन्होंने मीठी सी फटकार लगाई दूसरे की डायरी पढ़ने पर, फिर मैंने अपनी जिज्ञासा छुपाते हुए रवि से पूछा "हम से पहले जो किराएदार थे वो कौन थे? रवि ने कहा "कोई लेफ्टिनेंट जनरल जयंत चौधरी और उनका परिवार था यहां | मेरा कलेजा मुंह को आया पर कुछ नहीं कहा| रात भर जयंत के बारे में सोचती रही फिर करवट बदली तो रवि मासूम बच्चे की तरह सो रहे थे| 15 खूबसूरत साल गुजार दिये रवि के साथ ,सब कुछ सही और बेहतरीन है मेरे जीवन में| जयंत भी अपने परिवार के साथ खुश होगा जैसे मैं हूं इसी उम्मीद के साथ मैं धीरे से रवि की बाहों में खुद को सुरक्षित महसूस करा नींद की आगोश में चली गई|

सुबह बहुत ही खुशगवार था| डायरी हाथ में थामे मैंने उसकी आखरी लाईने पढ़ी "हर कहानी मुकम्मल नहीं होती"।एक आह निकल गई।

फिर मैंने सोचा "हमारी भी नहीं थी| पर हम दोनों अपने अपने जहां में खुश और संतुष्ट हैं|"

यह सोचते हुए मैंने उस डायरी और हमारे किस्से को हमेशा के लिए दिल के कोने में दफना दिया जो उसकी सही जगह है|

स्वरचित

शालिनी नारायणा

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Shalini Narayana

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