मैं ससुराल नहीं जाउंगी।

एक लड़की का अपने पिता के सम्मान के लिए उठाया गया कदम क्या उसके जीवन की नयी शुरुआत में बाधाएं लाएगा??

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Shalini Narayana
Shalini Narayana 25 Jul, 2020 | 1 min read

मेरी ये कहानी मेरे बहुत ही करीबी के निजी जीवन के अनुभव से ली गई है। इस अनुभव ने मुझे लिखने और सोचने पर मजबूर किया है। चूंकि मैंने इस घटना को कहानी में रुपांतरित किया है इसलिए इसमें थोड़ी नाटकीयता का समावेश है मुख्य किरदार और कुछ किरदार वास्तविक है बाकी काल्पनिक हैं।

श्याम सुंदर जी का घर मेहमानों से भरा हुआ है।सुबह से ही वो पूरे घर को सिर पर उठा हुए हैं। जल्दी जल्दी काम करो सब ।अभी तक फूलों की लड़ियां नहीं बंधी है। मेहमानों के खाने पीने और ठहरने की व्यवस्था भी देखनी है। मिठाई के डिब्बे और रिटर्न गिफ्ट की पैकिंग पूरी हुई की नहीं?? कहते हुए वो झुंझलाए जा रहे थे। रमा जी ने चाय का कप पकड़ाते हुए उनसे कहा" जरा दो मिनट सांस ले लिजिए सब अच्छे से हो जाएगा आप नाहक ही परेशान हो रहे हैं" । शाम होने को है कब तक निपटेंगा ये सब रमा? जरा धीरज रखिए आप... कहकर रमा जी मीनल के कमरे की ओर चल पड़ी। शाम तक पूरा घर बेला गेंदा और गुलाब के फूलों और रंग बिरंगी लाईटों से सज गया,और पूरा घर पूरी ,मूंग दाल हलवा और तरह तरह के पकवानों की खुशबू से महकने लगा। आज उनकी बड़ी बेटी मीनल की शादी है। श्याम सुंदर जी और रमा जी की दो पुत्रियां हैं और मीनल बड़ी बेटी है। श्याम सुंदर जी ने दोनों बेटियों को खूब पढ़ाया लिखाया और आत्मनिर्भर बनाया। दोनों बेटियां बैंक में अच्छे पदों पर कार्यरत हैं। संस्कारों और मार्डन खयालातों का बेहतरीन मिश्रण है मीनल। सुर्ख लाल जोड़े में सजी मीनल बहुत ही खूबसूरत लग रही थी।

गोधूलि बेला में जयमाल का मुहूर्त रखा गया है।लोग बरातियों के आने का इंतजार कर रहे हैं। बैंड बाजे का शोर सुन सभी सखियां और बहनें मीनल को कमरे में छोड़कर बारात देखने बालकनी में आ गई।

श्याम सुंदर जी और रमा जी ने टीका और फूल

मालाओं से सभी बारातियों का भरपूर स्वागत किया। शादी की रस्में एक एक कर हो रही हैं। सात फेरों,सप्तपदी और मंत्रोच्चार के बीच विकास का हाथ थामे मीनल नयी जिंदगी की शुरुआत कर रही है, पर बारातियों की खुसुर फुसुर उसके कानों मे़ पड़ रही है जो उसे परेशान कर रही है।विदाई के समय घूंघट में छिपी मिनल अपने आंसुओं को छिपा रही थी। श्याम सुंदर जी अपने कलेजे के टुकड़े को विकास के हाथों में सौंपकर कृतज्ञ महसूस कर रहे हैं। सांवली सलोनी पढ़ी लिखी हुनरमंद मीनल को पाकर विकास बहुत खुश लग रहा है। बारातियों में खुसुर फुसुर चल रही थी जो अनजाने में मीनल के कानों में पड़ गये। मीनल ने सुना के खाने के वक्त कुछ कहा सुनी हो गई थी। विकास के चाचा ने खाना खाते समय पूरी को फैंक दिया और पूरियां कच्ची है कहकर वे खाना बीच में छोड़ उठ गये।मीनल के ममेरे भैया और श्याम सुंदर जी को इस बात की खबर हुई और वे उनको शांत कराने के लिए भागे भागे आए थे।हाथ जोड़ माफी मांगी और दुबारा खाने का इंतजाम करवाया। विदाई के समय मीनल ने सुना के विकास के बड़े भाई प्रशांत चाचाजी से कह रहे थे "खाना अच्छा नहीं था चाचाजी। स्वाद बिल्कुल नहीं था। घर जाते हुए कहीं रुककर खाते चलेंगे हम सभी। कहीं कोई बाराती कह रहा था आव भगत अच्छे तरीके से नहीं की।बड़े बेटे प्रशांत के शादी के वक्त जितने जोर शोर से बारातियों की आवभगत हुई वैसा बिल्कुल नहीं हुआ। दहेज में कुछ दिख भी नहीं रहा। मीनल का मन अंदर ही अंदर विचलित हो रहा था। विदाई की रस्में पूरी कर जब मीनल कार के पास पहुंची और विकास ने जैसे कार का दरवाज़ा खोला मीनल ने अपना घूंघट निकाला और अपनी बुलंद आवाज में कहा "मैं ससुराल नहीं जाउंगी पापाजी।मुझे ये शादी मंजूर नहीं।" सभी हक्के बक्के हो कर मीनल को देखने लगे। श्याम सुंदर जी ने धीरे से मीनल के कंधों पर हाथ रखा और पूछा क्या बात हो गई बिट्टू ?ये क्या कह रही हो? मीनल ने अपने पिता का हाथ थामा और कहा सही कह रही हूं पापा मुझे ये शादी मंजूर नहीं।

पर बात क्या हो गई? श्याम सुंदर जी रमा देवी की और देखने लगे। कैलाश नाथ जी और विकास के चेहरे पर असमंजस की लकीरें उभर आई। विकास को कुछ समझ नहीं आ रहा के बारातियों के सामने मीनल क्यों दो परिवारों की इज्ज़त उछाल रही है।

कैलाश नाथ जी श्याम सुंदर जी के पास आए और बोले क्या बात हुई है ? मीनल ने ये फैसला पूरी शादी होने के बाद क्यों लिया? हमारी फजीहत करने के लिए आपने ये रिश्ता जोड़ा है क्या श्याम सुंदर जी?

श्याम सुंदर जी नजरें नीची किए उनकी बातें सुन रहे थे। मीनल ने आकर हाथ जोड़े और कहा "बाबूजी मेरे मां बाप ने बहुत मेहनत कर के हम दोनों बहनों को बहुत पढ़ाया लिखाया और हम दोनों आज आत्मनिर्भर हैं। लोगों को खाने में कमियां दिख रही पर ये नहीं दिख रहा के पिता जी ने हम में कोई कमी नहीं रखी। मीनल की आवाज़ रुंधेने लगी। श्याम सुंदर जी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा बिट्टू छोटी सी बात है बेटा जाने दे। नहीं पिताजी!! ये छोटी बात नहीं है क्या मैं यह नहीं जानती के आपने अपनी कितनी ख्वाहिशों को मारा है ताकी हमारी शादी में कोई कमी न हो। कितनी रातें जागकर आपने और अम्मा ने काटे हैं और शादी की तैयारियां की हैं। अपने सामर्थ्य से बढ़कर खर्च किया ताकी बारातियों को कोई तकलीफ़ न हो। अगर खाने में स्वाद नहीं और पूरियां कच्ची है तो इसके जिम्मेदार आप कैसे हो सकते हैं ?आपने और अम्मा ने कितनी खोज परख कर के पकवान वाले को चुना था। अगर उससे गलती हो गई तो आप पर तोहमत क्यों लगा रहे हैं लोग आपने नहीं बनाया न खाना पिताजी ।आपकी अच्छाई मेहनत और ईमानदारी क्यों नहीं दिखती लोगों को ,दहेज में कुछ नहीं दिया ये दिख रहा है।अपने दिल के टुकड़े को आप पाल पोस कर इतना काबिल बनाकर दूसरों को सौंप रहे हैं ये क्यों नहीं दिखता लोगों को ?आप का कलेजा कितना रो रहा है फिर भी आप मुस्कुराते हुए सब का ख्याल कर रहे हो और लोग आपकी नेक दिली और खातिर दारी को दूसरों की सेवा से तोल रहे हैं। मीनल का गुस्सा और दर्द सिसकियों में बदल चुका था और वह बिना रुके सब कहे जा रही थी। अपनी बेटी की बातें सुनकर श्याम सुंदर जी ने कहा " मुझे गर्व है बिट्टू की तू मेरी बेटी है,शांत हो जा और विदाई के लिए तैयार हो जा बच्चे। मुझे बारातियों के बातों का कुछ बुरा नहीं लगा ये सब अपने है इसलिए कह दिया।" कह कर श्याम सुंदर जी अपनी आंखों के कोर को पोंछने लगे। नहीं पिताजी!! मुझे ये शादी मंजूर नहीं। जिस घर में मुझे पूरी जिंदगी गुजारनी है अगर उस घर के लोगों में मेरे पिता के लिए सम्मान की भावना न हो तो मैं वहां कैसे सब को सम्मान दे पाऊंगी। कैलाश नाथ जी की ओर रुख कर मीनल ने कहा " बाबूजी मुझे माफ़ कर दीजिए, इसमें मेरे पिताजी की कोई गलती नहीं है। ये निर्णय मेरा है।एक लड़की के पिता होने का अहसास आप नहीं समझ पाएंगे क्योंकि आपकी कोई बेटी नहीं है बाबूजी। मेरे पिताजी ने अपनी पूरी उम्र की पूंजी मेरे और मेरी बहन की शादी के लिए बचा के रख दी हैं। जिसमें न जाने उनकी कितनी ख्वाहिशें और अधूरे सपने कुचले गए।पर उन्होंने कभी भी हमें महसूस नहीं होने दिया। हमारे सारे सपनों को पूरा किया।इतनी आज़ादी और सुनहरा भविष्य दिया है के हम बहनें किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं। बाबूजी बेटियां मां बाप के लिए पराया धन नहीं होती हैं वो तो उनके घर की रौनक होती है,उनका अनमोल धन। ज़रा सोचकर देखिए बाबूजी एक हरे भरे वृक्ष को अपनी जमीन से उखाड़ कर एक पूरी तरह से नयी जमीन और वातावरण में रोप दें और उम्मीद करें की वह उसी तरह से हरी भरी रहे और फल दे। मुश्किल लगता है ना? पर एक लड़की के माता-पिता ये करते हैं। अपने जिगर के टुकड़े को नये परिवेश में रोप देते हैं मुस्कुराते हुए। अपने सामर्थ्य से ज्यादा करते हैं ताकि उनकी बेटी सुखी रहें। और लोग उनकी इस भावना और त्याग का सम्मान करने के बजाय कमियां निकाल कर उनका मजाक बनाते हैं।कैलाश नाथ जी ख़ामोश हो कर सब सुन रहे थे। कैलाश नाथ जी के चेहरे पर कठोर रेखाएं उभर आई।

कुछ देर ख़ामोशी छाई रही, श्याम सुंदर जी की आंखें शून्य को ताक रही थीं। चेहरे पर किसी अनिष्ट की परछाइयां उभर आई। रमा जी का दिल बैठा जा रहा था किसी अनहोनी के होने का अंदेशा होने लगा । विकास मीनल की ओर टकटकी लगाए देख रहा था पर मीनल के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी सिर्फ गुस्से और दर्द के भाव थे।

कैलाश नाथ जी ने मीनल के सिर पर हाथ फेरा कहा "ये मेरा सौभाग्य है श्याम सुंदर जी !जो आपके घर हमने रिश्ता जोड़ा। हम बहू लेने आए थे पर ये हमारे अच्छे कर्म और भगवान की असीम कृपा होगी जो उन्होंने हमें बेटी दे दी और बेटी की अहमियत भी समझा दी। मैं हाथ जोड़कर तुझसे विनती करता हूं मीनल तुम हम सब को माफ कर दो और अपने घर चलो "। मीनल ने कैलाश नाथ जी के जुड़े हाथों को अपने हाथों से पकड़ कर कहा "बाबूजी!!आगे के शब्द उसके गले में अटक गये और वह रो पड़ी।

श्याम सुंदर जी और रमा जी के सर गर्व से ऊंचे हो गये। अपने दिए संस्कारों और परवरिश पर उन्हें मान हो रहा था।

अपने अम्मा और पिता जी के दीए संस्कार, अच्छाई और आशीर्वाद को अपने दिल में समेटकर मीनल सम्मान के साथ चल पड़ी एक नयी दुनिया बसाने।


P.S - अगली बार जब भी किसी लड़की की शादी में शामिल हों तो ये अवश्य याद रखें के उस एक दिन की खुशी और तैयारी के पीछे एक माता-पिता ने कितना कुछ त्याग किया होगा।उनके त्याग और भावनाओं का सम्मान करें।


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Shalini Narayana

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Akhilesh Upadhyay · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत ही अच्छी तरह से आपने इसे शब्दो में पिरोया है।।।

  • Surabhi sharma · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत अच्छी कहानी है |

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