निर्णय।

एक औरत का खुद के लिए गया निर्णय उसके जीवन में क्या बदलाव लाता है आइए जानें।

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Shalini Narayana
Shalini Narayana 13 Aug, 2020 | 1 min read

कभी कभी परिस्थितियां ऐसी बन जाती है के एक ही घर में साथ रहने वाले लोग अजनबी बन जाते हैं। हम एक ही छत के नीचे रहते हुए भी अपने अपने खोल में सिमट गए थे। मैं विघा हूं,अपने जीवन के ५० वसंत देख चुकी हूं मेरा जीवन सामान्य गति से चल रहा है ,सब कुछ है मेरे पास,पर मैं उम्र के उस पड़ाव में हूं जहां मेरे बच्चे अपनी जिंदगी में व्यस्त और पति को बात करने और मेरे साथ समय बिताने की फुर्सत नहीं।अगर मैं अपने को व्यस्त न रखूं तो मैं अवसाद में चली जाउंगी। आप लोगों को लग रहा होगा की आज कल की औरतों को समय कहां रहता है की वह अवसाद का शिकार हो कुछ न कुछ कर के वे अपने को व्यस्त रखती है पर मेरी तरह कुछ गृहणियां है जो ४५-५० की उम्र आते आते अजीब सी मनःस्थिति में पहुंच जाती है । मैं ने कही पढ़ा था इसे एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम कहते हैं जो अक्सर मांए महसूस करती है जब उनके बच्चे बड़े हो जाते हैं अपनी राह पर चल पड़ते हैं और पति अपनी जिंदगी में मसरूफ हो जाते हैं ताकि रिटायरमेंट आराम से कट जाए।और हम औरतें जो पूरी जिंदगी उनकी जरूरतों और इच्छाओं की पूर्ति में लगी रहती है हमारी जिंदगी अचानक से रुक सी जाती है ।जब सब सेटल होता है और उनके साथ समय बिताने का वक्त आता है तो बच्चे घौंसले को छोड़ उड़ने की तयारी में रहते हैं।अजीब विडंबना है ये।

मेरी अपनी सहेली की हालत मैंने देखी है ,मीना मेरी कालेज की सहेली है,उसके पति हमेशा टूर पर रहते और बच्चे अपनी जिंदगी में, उसकी तेज रफ्तार जिंदगी में अचानक से ठहराव आ गया। पति कहते आराम करो ,खुश रहो किस चीज की कमी है,घर सजाओ, कुकिंग क्लास जाओ।मीना का कहना भी सही है नये नये पकवान सीख के क्या करूंगी जब खाने वाले बच्चे घर में न हो,घर की सजावट कितने दफे करूं बच्चों के बड़े होने के बाद सजा सजाया घर वैसे ही रहता है। अकेले पन की शिकायत को उसके पति ने तवज्जो नहीं दी और धीरे धीरे मीना अवसाद की शिकार हो गई । उसके बारे में सोच कर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते। मैं अपने को ऐसे नहीं देख सकती। क्या मेरी स्थिति भी ऐसी ही हो रही है ?बेचैन मन से मैंने आईने में खुद को देखा अस्त व्यस्त कपड़े जिनमें कोई मेल नहीं , बिखरे बालों का जूड़ा, चेहरे पर झाइयां और आंखों के नीचे काले घेरे, उम्र का असर पूरी तरह से झलक रहा था।ये क्या कर लिया है मैंने अपने साथ ?किसी अजनबी सी लग रही हूं मैं।ये मेरा प्रतिबिंब नहीं हो सकता। नहीं नहीं नहीं मैं अचानक से चिल्लाने लगी ।न जिंदगी जीने की जिजिविषा,न आत्मविश्वास,न कुछ नया करने की इच्छा। वहीं रूटीन जिंदगी,वहीं खालीपन। नहीं!! सूने घर में मेरी आवाज़ गूंज रही थी, नहीं मुझे कुछ करना होगा । अपने लिए जीना होगा खोई हुई विघा को वापस लाना होगा ,उस विघा को जो आत्मविश्वास , जिंदादिली और सुंदरता से परिपूर्ण थी। मैं विचारों में खोई हुई रसोई में आकर खुद के लिए चाय बनाने लगी। बरामदे में किसी के आने की आहट सुनकर मैं बाहर आ गई देखा दो युवा खड़े थे एक लड़की और लड़का २२-२३ साल के होंगे ।अपना परिचय देकर कहा हम सोशल। साइंस में एम ए कर रहे हैं और एक एन जी ओ से जुड़े हैं ,जो गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं और किताबें वगरह उपलब्ध कराते हैं। डोनेशन के लिए आये हैं। उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान न देकर मैं उन्हें चेक देकर अलविदा करने की जल्दी में थी,उन लोगों ने कुछ फार्म भरा और मुझे देकर चेक लेकर चले गए।

मैं वापस अपने घर के काम में लग गई । रमेश (मेरे पति) के आने का समय हो रहा था। खाने की मेज पर दो टुक बातें और फिर वो और मैं अपने अपने फोन पर व्यस्त बस यही हमारा रुटीन था।

रात को नींद नहीं आ रही थी, अपनी जिंदगी को नयी दिशा देने फिर से पटरी पर लाने की उधेड़बुन में थी के रमेश ने कहा क्या किया आज दिनभर? बच्चों से बात हुई ?मुझे तो सांस लेने की भी फुर्सत नहीं मिली बड़ा व्यस्त दिन रहा आज का। मुझे गुस्सा आने लगा सब बिज़ी है बस मैं ही खाली बैठी हूं। किसी को मेरी परवाह नहीं।

सुबह से मन चिड़चिड़ा था, रमेश ने मेरा हाल देख चुप रहना बेहतर समझा। नाश्ता किया और दफ्तर के लिए निकल गये।

मैं अखबार पढ़ रही थी, कामवाली बाई आई और साफ सफाई में लग गई।मेरा पूरा चिड़चिड़ा पन आज बेचारी को झेलना पड़ा।बाई भी भुनभुनाती हुए काम कर चली गई।मेज पर कल उन बच्चों का दिया फार्म फड़फड़ा रहा था। उस हाटाने के उद्देश्य से मैंने उसे उठाया ,अनायास ही उसे पढ़ने लगी,एन जी ओ के बारे में लिखा था, पढ़ते वक्त अचानक ख्याल आया मैं भी एन जी ओ में बच्चों को पढ़ा सकती हूं।

फोन उठाया और बिना सोचे समझे नंबर लगा दिया। दूसरे तरफ से आवाज आई ,एन जी ओ के बारे में पूछ ताछ कर मैंने अपनी मंशा उन्हें बताई, वो बेहद खुश हुए और उनके आफिस का पता देकर आने को कहा।

कई दिनों बाद काटने की कलफ लगी साड़ी निकाल सलीके से तैयार हो मैं चल पड़ी अपनी जिंदगी को नया रूप देने। उन लोगों ने एक इंटरव्यू लिया और कहा मैडम आप कल से बच्चों को पढ़ाने आ जाएं।

मन खुशी से झूम उठा, वापसी में ब्यूटी पार्लर गई। एक नये रूप में खुद को देखकर आत्मविश्वास जाग गया। रात को रमेश ने बदले रूप को देखा और मुस्कुरा दिये कुछ कहा नहीं। खाने की मेज पर मैंने उन्हें एन जी ओ जाईन करने की बात कही, रमेश ने आश्चर्य से मुझे देखा और कहा रूम सच में ये करना चाहती हो ? मैं ने हां में सिर हिला दिया।अच्छी बात है जो तुम्हें अच्छा लगे।

सुबह रमेश के लिए सब कुछ तैयार कर मेज पर रख मैं खुद तैयार होने चली गई। काटन की नीली सफेद साड़ी निकाली ,करीने से बालों को संवारा,कई वषों बाद आंखों में काजल लगाया, पतली सी मोतियों की माला पहन जब बाहर आई तो रमेश ठगे देखते रह गए। बहुत खूबसूरत लग रही हो विघा।रमेश ने मेरे हाथों को पकड़ते हुए कहा।

मैंने मुस्कुरा कर उन्हें नाश्ते की प्लेट दी और अपने काम के लिए निकल पड़ी। बच्चों को पढ़ा कर उनके साथ समय बिता कर बहुत अच्छा लगा, जिसका पूरा असर मुझ पर दिखने लगा, मैं खुश रहने लगी,दिन भर नये नये तरीके सोचती , बच्चों को पढ़ाने के। पढ़ाई में उनकी दिलचस्पी जगाने के लिए।

अब तो नया जोश जीवन में आ गया। घर के काम अपने समय अनुसार होते रहे जिस वजह से रमेश भी खुश थे,मेरा चिड़चिड़ा पन खत्म हो गया। हर दिन अच्छे से तैयार होना खुद को प्रेसेनटेबल बना कर काम पर निकलना मेरे व्यक्तिव को निखार दे रहा था। मेरे अंदर आए बदलाव से रमेश भी बहुत खुश थे। मुझे आज घर लौटने में देर हो गई। बच्चों के साथ समय का पता नहीं चला और एन जी ओ वालों ने एक छोटी सी पार्टी रखी थी वूमेनस डे के उपलक्ष्य पर। घर पहुंची तो रमेश आ चुके थे ।आते ही उन्होंने मेरे लिए चाय बनाई और एक उपहार दिया। मैं आश्चर्यचकित थी।। उन्होंने कहा तोहफा है। रमेश वापसी में मेरे लिए बहुत ही प्यारी सी साड़ी और गजरा लाए। उसे पहन कर आने का मनुहार करने लगे। उनका मन रखने के लिए मैं नयी साड़ी पहन , गजरा लगाकर जब बैठक में आयी तो देखा रमेश ने ने खाने की मेज़ सजा कर रखी थी, मैं हैरान सी देख रही थी , रमेश ने नजदीकी आकर कहा तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो विघा, मैंने शर्मा कर नजरें झुका ली और फिर कहा पहले तो कभी तारीफ नहीं की। नहीं ऐसा नहीं है ! खूबसूरत तुम मुझे हमेशा से ही लगती थी पर ये जो आत्मविश्वास और तुम्हारे काजल लगी आंखों की चमक है न वो तुम्हारी खूबसूरती को चार चांद लगा रही है। मैं ही गलत था जो तुम्हारे अकेलेपन को समझ न पाया,पर ये जो तुमने खुद के लिए जीने और खुद के लिए समय निकालने का निर्णय लिया था ,वो बहुत सही समय पर लिया गया निर्णय था। मैं वाकई में बहुत खुश हूं अपनी पुरानी विघा को वापस पाकर।

जिंदगी के लम्हे भी कब क्या रंग लायेंगे ये कोई नहीं जानता। खुशी किस रूप में दस्तक दे जाए हमें नहीं पता होता।एक छोटी सी पहल और निर्णय ने मेरे जिंदगी के कैनवस पर नये रंग बिखरे दिए। खुशियां मेरे घर में हमेशा के लिए रहने आ गई।


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Shalini Narayana

shalini_Narayana13

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सुन्दर

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