कुदरत के तेवर देख चूर हो गया है |
आदमी ही आदमी से दूर हो गया है |
जो कहता था स्वयं को अब तक खुदा |
बेबस, लाचार और मजबूर हो गया है ||
बेखौफ घूमते हैं जानवर सड़को पर |
इन्सान कैद घर में भरपूर हो गया है ||
बडे़ शौक से रूख किया था शहरों में |
गांव के लिए वापस जरूर हो गया है ||
साथ देगा हर घडी़ यकीन था जिन पर |
वो हर शख्स अब मगरूर हो गया है ||
सीमा शर्मा सृजिता
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.