चांद का कंगन

Love poetry

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Seema sharma Srijita
Seema sharma Srijita 01 Feb, 2021 | 1 min read
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आज फिर वो हंसी रात याद आ गई 

सोचकर ही जानेजाना नजर युं शरमा गई 

चांद को कंगन बना तुने मुझे पहना दिया 

देखा था कुछ इस कदर बिन पिये बहका दिया

भरकर फिर आगोश में ऊंगली चलाई जिस्म पर

भूलकर सारा जहां मैं समा गई तेरे भीतर

हौले हौले बाहों की कसक यूं मजबूत करके 

इक पल में ही बेसुध होकर मिल गई मैं टूट करके

आवारा सा मन हुआ था शर्म से मैं लाल हुई 

कतरा कतरा पिघलकर तुने मेरी रूह छुई 

अम्बर सा तु, बन बदली मैं तुझमें कुछ यूं मिली 

सर्द भयकंर रातों में गर्म धूप सी मैं खिली 

एक हो गये रूह ने तुझको यूं स्वीकार किया 

तेरे बिन इक पल भी जीने से दिल ने इंकार किया |

@सीमा शर्मा "सृजिता"

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