अस्तित्व की तलाश

पारिवारिक जिम्मेदारियों में खुद को भूली एक नारी की कहानी

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Seema sharma Srijita
Seema sharma Srijita 09 Dec, 2020 | 1 min read

"अस्तित्व क्या है तुम्हारा ? तुम हो क्या? पहचान क्या है तुम्हारी बस इतनी कि मेरी पत्नी हो तुम इससे ज्यादा कुछ नहीं और रसोईघर तक ही सीमित है तुम्हारी प्रतिभा |मुझे नहीं अच्छा लगता तुम्हें अपने साथ किसी भी फंक्शन में ले जाना तो जो जगह तुम्हारे लिए है वहीं रहो |" विशाल कहते हुये घर से बाहर जा चुका था और मीनल उसे देखते ही रह गई और बुत बनकर सोफे पर बैठ गई |

बस इतना ही तो चाहती थी कि विशाल उसे भी अपने साथ अपने ऑफिस के अवार्ड फंक्शन में ले चलें |आज विशाल को बैस्ट मैनेजर ऑफ द कम्पनी का अवार्ड मिलने वाला था |मीनल और विशाल की शादी के समय विशाल एक छोटी सी नौकरी करता था और मीनल स्कूल में पढा़या करती थी |विशाल के घर की जिम्मेदारी मीनल पर आ गई और विशाल का पूरा ध्यान अपने काम पर था |मीनल पढी़ लिखी होकर भी घर तक ही सिमट कर रह गयी और विशाल के कदम आगे बढ़ते गये |विशाल जितनी तरक्की कर रहा था उतना ही घमन्डी होता जा रहा था |अब उसे घरेलु नहीं कामकाजी महिलायें ज्यादा पसन्द आने लगी थी |

काफी देर रो लेने के बाद मीनल सोफे से उठी और अपने कमरे में जाकर आइने के सामने खडी़ हो गई |गौर से अपने आप को देखने लगी कितना बदल गई है वो इन 18 सालों में |कॉलेज की सबसे सुन्दर और स्मार्ट लड़की आज अपनी उम्र से कितनी बडी़ लग रही है |40 की उम्र  में ही बाल सफेद पड़ गये हैं वजन भी कितना बढ़ गया है |उसकी उम्र की औरतों को देखो अब भी कितनी जवान और खूबसूरत लगती हैं |

मीनल ने अलमारी से अपनी पुरानी एल्बम निकाली और अपने पुराने फोटो देखने लगी और सोचने लगी -कितनी आगे रहा करती थी स्कूल कॉलेज में हर एक्चिविटी में |नृत्य- संगीत ,कला हर चीज में अव्वल थी |ग्रेजुऐशन के बाद एक स्कूल में बतौर आर्ट टीचर उसने नौकरी कर ली थी |साल भर ही कर पाई थी बस फिर घरवालों ने शादी तय कर दी और वह आ गई इस घर में विशाल के साथ अपने सपनों की गठरी लेकर लेकिन वक्त ने कब उसके हर सपने की गठरी को गंगा में बहा दिया पता ही नहीं चला |शादी के कुछ महीने बाद उसने कहा था विशाल से कि उसे वापस अपना स्कूल जॉइन करना है लेकिन विशाल और उनके मम्मी पापा ने ये कहकर मना कर दिया था कि अभी नई नई शादी हुई है परिवार को समय देना चाहिए नौकरी तो कभी भी कर सकते हैं |मीनल अच्छी बहु और पत्नी के धर्म को निभाने के लिए तैयार हो गई अपनी इच्छा को मारने के लिए |1 साल बाद ही उसने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया और लग गयी उनकी परवरिश में |बीच -2 में कई बार कोशिश की कि बच्चे स्कूल जाने लगे हैं तो वो भी वही स्कूल जॉइन कर ले लेकिन तब ससुर जी को पैरालाइसिस का अटैक पड़ गया और मीनल का नौकरी करने का ख्वाब फिर से चूर चूर हो गया |रिश्तों और जिम्मेदारियों के बोझ तले कुछ इस कदर दब गई मीनल कि बस अपनों के लिए ही जीकर रह गयी |अपने लिए ना कभी सोच पाई और नाहीं कुछ कर पाई |अपने पति और बच्चों की खुशी में ही तलाश ली उसने अपनी हर खुशी और वह अपने जीवन से खुश भी थी लेकिन आज विशाल के बर्ताब और बातों ने दिल छलनी कर दिया उसका |

मीनल ने खुद को संभाला और अलमारी से अपनी बनाई आर्टस इकटठी की जिन्हें वह कभी समय मिलते और मन होने पर बना लिया करती थी |एक से बढ़कर एक आर्ट थी उसके पास |मीनल रात भर सोई नहीं हॉस्टल बच्चों को फोन किया जो इन्टर करने के बाद अपनी आगे की पढाई के लिए अलग -2 शहरो में रह रहे थे |हर रात मीनल अपने दोनों बच्चों से बात करती |जब तक बात नहीं कर लेती और पूरे दिन का हालचाल न ले लेती उसे नींद न आती |

विशाल रात को लेट आये मीनल सोने का नाटक करती रही और कोई बात नहीं की या कहिये करना नहीं चाहती थी |विशाल को बहुत अजीब लग रहा था क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था कि मीनल उसके आने से पहले सो जाये |10 बार फोन करके चिन्ता जताने वाली मीनल ने आज 1 बार भी फोन नहीं किया |विशाल महसूस कर रहा था कि मीनल का दिल इस बार उसने कुछ ज्यादा ही दुखा दिया था |वह सोचने लगा कि सुबह उठकर सॉरी बोल देगा |

अगले दिन विशाल की नींद खुली तो देखा मीनल कमरे में नहीं थी वह नीचे गया तो देखकर दंग रह गया मीनल डायनिंग टेबल पर नाश्ता कर रही थी बडी़ सुन्दर सी लग रही थी |खुले बाल, हाथ में घडी़ और ब्लैक कॉटन सारी |सालों बाद मीनल इतनी प्यारी लग रही थी |विशाल मीनल के पास गया और बोला - "अब तक नाराज हो, आज चाय लेकर ऊपर नहीं आई तुम |"

" हां क्योकिं अभी आपकी चाय का समय नहीं हुआ है मैंने बना दी है गर्म कर लीजिए और मैं आपसे नहीं अपने आप से नाराज थी अब मुझे देर हो रही है ,आपका लंच लग गया है ले जाना |" टेबल से अपनी आर्टस की फाइल उठाते हुये मीनल ने कहा |

तुम जा कहां रही हो? विशाल ने कहा |

"अस्तित्व की तलाश में ,जो खो दिया मैंने कहीं अपनों को खुश करने और उनका ख्याल रखने में |मालूम नहीं था वही लोग एक दिन मुझे अपने साथ खडे़ करने में शर्मिंदगी महसूस करेंगे |"मीनल ने कहा |

"लेकिन इस घर का और मां का क्या होगा मीनल |तुम स्कूल जाओगी तो मां को कौन देखेगा |" विशाल ने कहा |

14 साल पापा जी और 18 साल मां का ख्याल रख लिया मैंने बहुत अच्छी तरह अब मुझे मेरी पहचान ढूँढनी हैं और मां का ख्याल रखने के लिये उनका बेटा है|

मीनल कहते हुये घर से निकल गई और विशाल उसे अवाक सा देखता ही रह गया, आज विशाल को मीनल का अलग ही रूप देखने को मिला था |

मेरी नई कहानी.. ...उम्मीद है आपको पसन्द आयेगी |


-सीमा शर्मा "सृजिता"

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Seema sharma Srijita

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