बिखरेगा तो नहीं ख़्वाब मेरा? जो कल मैं, मैं न रहा,
समझेगा जमाना ज़वाब मेरा? जो कल मैं, मैं न रहा,
अब तक शानो-शौकत से जीता आया हूँ मैं ज़िन्दगी,
क्या बाकी रहेगा रूवाब मेरा? जो कल मैं, मैं न रहा,
आसमान पर छाने की ख़्वाहिश लिए बढ़ता रहा हूँ मैं,
चमकता रहेगा ये आफ़ताब मेरा? जो कल मैं, मैं न रहा,
कई फैसले किए, सही और गलत का तो कुछ पता नहीं,
आख़िर करेगा कौन फ़िर हिसाब मेरा, जो कल मैं न रहा,
अपने फैसलों पर भी अपने हक़ के लिए लड़ा है “साकेत",
कैसे आगे बढ़ेगा फ़िर इंकलाब मेरा? जो कल मैं, मैं न रहा।
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