याद आई जो आज एक याद, तुझे याद करते-करते,
रूह की भी निकली फ़िर आह, तुझे याद करते-करते,
ख़ुश थे, तुझे भुलाके हम अपनी तन्हाई के आग़ोश में,
धधकी फ़िर वीराने दिल में आग, तुझे याद करते-करते,
न चाहा था कि इस अंज़ाम से कभी फ़िर से गुजरेंगे हम,
मगर यही मंज़िल, यही रही है राह, तुझे याद करते-करते,
है कमाल का मंज़र ये, मैं मेरा हूँ मगर मेरा मैं कुछ भी नहीं,
बर्बाद की मैंने तुझे चाहकर हर चाह, तुझे याद करते-करते,
है इम्तहान कोई बाक़ी “साकेत", जो मैं हूँ मुझमें बाक़ी कहीं,
वरना पूछ! हुआ हूँ कैसे मैं मुझमें ख़ाक़, तुझे याद करते करते।
BY:— © Saket Ranjan Shukla
IG:— @my_pen_my_strength
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