शीर्षक:— तत्काल के हालात
#स्याहीकार #my_pen_my_strength
मद्धम पड़ गई है चाल मेरी अब मैं भूचाल न रहा,
भय का भय, मुश्किलों के लिए अब काल न रहा,
आँखें तरेरकर अब जवाब माँगते हैं ये लोग मुझसे,
आँधियों को कंपकंपी देने वाला मैं वो सवाल न रहा,
दुश्मनों के सर तो उठते भी नहीं थे, मेरे सामने कभी,
सपनों के छल का मारा मैं, तनिक भी निहाल न रहा,
कभी थका न था लड़ते-लड़ते, मैं कोई ज़ंग ज़िंदगी से,
टूटता न था मैं, है शक ये कि मैं मुझमें फ़िल्हाल न रहा,
हूँ बेबस अभी मगर उठ ज़ल्द खड़ा होऊँगा मैं “साकेत",
तत्काल तो ये भी कमाल ही है कि मैं अब कमाल न रहा।
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