सर दूजी ओर घुमा लो, नज़रें तुम मिला न सकोगे,
नक़ाब तले चेहरा अपना अब और छुपा न सकोगे,
ग़म तुम्हें किस बात का है जो अश्क़ बर्बाद करते हो,
अपनी बेवफ़ाई को तुम मजबूरियों में गिना न सकोगे,
तरक़ीब अच्छी थी मासूमियत को हथियार बनाने की,
ये खंज़र, हम पर तो दोबारा कभी आजमा न सकोगे,
आईनों का अगर इस्तेमाल करते हो, फोड़ डालो उन्हें,
देखकर अक़्स अपना, कभी ख़ुद को अपना न सकोगे,
“साकेत" से तुम्हारी ये आख़िरी मुलाकात न हो तो भला,
ये सुर्ख़ आँखें दिख जो गईं तुम्हें, कभी मुस्कुरा न सकोगे।
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