मैं लड़ा था

मैं लड़ा था

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 21 Nov, 2022 | 1 min read
#my_pen_my_strength

मैं लड़ा भी जब-तक लड़ सकता था,

कोशिशें कीं जब-तक कर सकता था,


ठोकर खाई, ज़ख्म सहे पर थका नहीं,

राह में डटा रहा जब-तक डट सकता था,


हालात बेहतर होने की आस दे बिगड़ गए,

ख़ुद ही संभला जब-तक संभल सकता था,


साथ जो भी था सबको ख़ुद ही दूर किया है,

रहा भी क़रीब सबके जब-तक रह सकता था,


लेने वाले सब कुछ ले ही लेने पर तुले हैं शायद,

बंटता रहा हरेक कतरा, जब-तक बंट सकता था,


अकेलेपन को ही अपना मान, सब सौंपा उसे मैंने,

खोता रहा ख़ुदको, तन्हाई जब-तक सह सकता था,


किसके सहारे मारूँ हाथ पैर और किसकी तकूँ राह,

टटोला हर तिनके को, बदन जब-तक तर सकता था,


आँखें यूँ डबडबाईं कि नज़रिया तक धुंधला गया मेरा,

लड़खड़ाते कदमों से भी बढ़ा जब-तक बढ़ सकता था,


तकलीफ़ के मायने, हरेक मोड़ पर बदलते रहे मेरे लिए,

मैं भी बदलता ही रहा ख़ुदको जब-तक बदल सकता था,


दिल को कोई गुरेज़ नहीं है “साकेत" यूँ हार मानने से अब,

क्योंकि ये जानता है कि मैं लड़ा, जब-तक लड़ सकता था।


BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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