नारी और प्रेम

क्षणिका

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 01 Nov, 2021 | 1 min read



1.परेशान लोगों के नजरिये से

बेवजह के सवालों से

छीटाकशी से

मगर देख उस स्त्री को

झट से निकला 

देखो उसकी बेहयाई

कैसे कपड़े,कैसा रहन सहन

पीर क्यों नही समझ आई।


2.एक यक्ष प्रश्न

घर के दहलीज से बाहर जाती

स्त्री घर कैसे संभालेगी।

मगर घर के अंदर रहकर

संसाधनों के बिना

वह घर कैसे संभालेगी।


3.स्त्री पुरुष जीवन गाड़ी के 

दो पहिये।

स्त्री परलोक गामिनी

फिर बेचारा पुरुष कैसे घर संभालेगा।

मगर पुरुष परलोक गया,

तुम अपने बच्चे के सहारे

जीवन काट लो।

कैसा दोगलापन है समाज में।


4.स्त्री पुरुष के बीच संबंध

चरित्रहीन है वो स्त्री।

पुरुष को फाँस लिया।

और पुरुष बेचारा क्या करें

स्त्री के बहकावे में आ गया।

यही है स्त्री पुरुष के विकास

की सच्ची परिभाषा।


5.बेटियाँ पराया धन

क्यों खर्च करें उस पर

ब्याह भी तो करना है।

बहुएं नौकरीपेशा मिले

इसके लिए प्रयत्न करना है।

कमाती हो ससुराल के लिए,

मायके क्यों भेजना है।

बेटी लाये कपड़ा तो उसको 

हमने ही तो पढ़ाया

इतना तो मेरा हक है।


6.प्रेम का खुमार

उसके मन पर छाया।

परवान चढ़ता इससे पहले ही

जाति पाँति ,ऊँच नीच

गरीब अमीर के खाई के बीच

तिरस्कृत किया गया।

फिर लगा प्रेम आत्मसम्मान के

बदले 

प्रेम से बेहतर पीड़ा है।


7.मिलन की आस 

लगी थी मन को प्यास

काँपते होठ,सिमटता वजूद

तभी सीमाओ का ध्यान।

माथे पर एक चुम्बन

और प्रेम की पवित्रता का एहसास।


8.पाने की चाहत,

सर्वस्व समर्पण

नही धैर्य और संयम

यही बनाता प्रेम

को विकृत

और जमाने में तिरस्कृत।


9.ना वादा कोई,न ही कोई दावा

बस खुशी में खुश

दुख में दर्द

दूर से पास होने का एहसास।

जमाने के नजरों में

नही मुमकिन ऐसा प्रेम।

जो है प्रतीक्षारत

जीवनपर्यंत, मृत्यु के साथ।


10.प्रतिबंधों में प्रेम का 

अंकुरण तीव्रतम

भावनाओं पर लगाना नियंत्रण

लगे दुष्कर।

मगर स्नेह और दुलार

और जड़ों तक जमा हुआ संस्कार।

बनाता प्रेम का यह रूप

सर्वोत्तम।



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