यहाँ इस घटना को लिखने का एकमात्र उद्देश्य शायद हताशा और निराशा के बीच उम्मीद की एक डोर आप थाम सकें और जीवन के प्रति अपना नजरिया बदल सकें।
बात 2003 की है मैं लंबी बीमारी हताशा और निराशा के बीच जीवन से संघर्ष करते हुए बी.एड परीक्षा का एंट्रेंस टेस्ट देने गोरखपुर गयी थी।मेरे साथ मेरी मम्मी थी।दूर के किसी रिश्तेदार के घर हमारा रुकना हुआ वो लोग बहुत संपन्न और शांतचित्त लोग थे,पर वहाँ जाने के बाद पता नही क्यों मुझे एहसास हुआ कि मैं शायद गलत जगह आकर ठहर गयी हूँ या तो यह मेरा खुद को कमतर समझना था या फिर उनलोगों के बीच मेरी झिझक थी।हालाँकि वह लोग बहुत ही ज्यादा अच्छे थे।परीक्षा के एक दिन पहले ही उनके घर के एक सदस्य जिन्हें मैं भैया कहती थी उन्होंने परीक्षा केंद्र वगैरह का पता कर लिया था,ताकि सुबह परेशानी न हो।फिर रात में भोजन की मेज पर परीक्षा से लेकर मेरे खराब स्वास्थ्य तक कि चर्चाएं प्रारम्भ हो गयी थीं।
उस घर के लोगों का यह कहना है कि यहाँ हर वर्ष दो चार रिश्तेदार परीक्षा देने के लिए आते पर अभी तक किसी का नही हुआ है अब रुचि को देखना है मेरे मन में भय पैदा कर रहा था।खैर करते रात कटी हमलोग सुबह नियत समय केंद्र पर पहुँच गये।
प्रथम पाली की परीक्षा के बाद बहुत सारी लड़कियों को आपस में चर्चा करते सुना कि कोई एक बार आया है कोई दूसरी बार।किसी ने पी.एच. डी की है तो कोई प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा।मैं अंदर से और भी ज्यादा भयभीत हो गयी।
खैर इसके बाद दूसरी पाली की भी परीक्षा सम्पन्न हो गयी और मेरे मन का भय मुझे परीक्षा परिणाम को लेकर आश्वस्त नही होने दे रहा था।
क्योंकि दसवीं के बाद मैंने सारी पढाई घर में ही रहकर स्वाध्याय से की थी।
खैर परीक्षा के बाद जब मैं स्टेशन पहुँची तो लगा कि पूरे देश के छात्र गोरखपुर स्टेशन पर ही हैं।उन्हें देखकर मेरा मन बहुत घबड़ाने लगा कि इतने लोगों के बीच मुझे कहाँ कोई जगह मिल पाएगी।मैं अपनी मम्मी से बार बार यही प्रश्न कर रही थी अगर इस बार चयन नही हुआ तो क्या तुम दुबारा परीक्षा दिलवाओगी?
और उनका दो टूक जबाब नही, कभी नही,अपनी हालत देखो जिंदगी का ठिकाना नही ,हालत खराब हो रखी है तुम्हारी ,अब दुबारा तो यह गलती कभी नही करूँगी।
मम्मी अपनी जगह सही थी,माँ कभी भी अपने बच्चों को तकलीफ में नही देख सकती।और मैं दर्द तकलीफ थकान की शिद्दत से गुजर रही थी।
गोरखपुर से हमलोग बनारस गए क्योंकि मेरा चेकअप करवाना था।
वही डॉक्टर के कमरे के बाहर एक बुजुर्ग मिले जो बातचीत के दौरान मेरी परेशानी और भय को जानकर सिर पर हाथ फेरते हुए बोले बेटा ,घबड़ाओ मत,कर्म करते रहो,ईश्वर सारे दरवाजे बंद नही करता।
और फिर चार महीने बाद मेरा रिजल्ट आया तो मेरा चयन हो चुका था।
अब फिर एक बार जंग थी अगर मैं मेरिट में नही आती तो मुझे मनचाहा कॉलेज नही मिलता और शारीरिक परेशानियों के चलते मैं दूर जाकर पढाई नही कर सकती थी।फिर एक बार चिंता घबड़ाहट मेरे साथ थी।हमलोग निर्धारित तिथि को कागजात के साथ विश्वविद्यालय पहुँचे।
उधर announcment में जिन बचे हुए कॉलेजों के नाम बताए जा रहे थे वह मेरे घर से काफी दूर थे।।
निराश मन से मेरे नाम की घोषणा के बाद जब मैं निर्धारित मेज के सामने पहुँची तो मैडम ने पूछा कौन सा कॉलेज? मैंने अपने इच्छित कॉलेज का नाम बताया तो उन्होंने घूरते हुए कहा तुमने घोषणा नही सुनी।
मैंने कातर दृष्टि से बस इतना ही कहा मैम ,और उन्होंने झल्लाते हुए पन्ने पलटे और ठिठकी फिर दुबारा पूछा क्या बोला तुमने फिर मैंने कॉलेज का नाम दुहराया।
तब उन्होंने कहा कि बधाई हो रूचिका लगता है आपके लिए ही यह सीट खाली थी और फिर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही रहा।।
सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद जब मैं बाहर आई तो वह भैया मिठाई का डिब्बा लिए खड़े थे जिनके घर रुककर मैंने परीक्षा दी थी।
उन्होंने कहा कि तुमने मेरे घर का वो दाग खत्म कर दिया कि यहाँ रुकने वाले अभी तक किसी का चयन नही हुआ है।और फिर जबरदस्ती घर जाने के लिए पापा से बोलने लगे।और थोड़ी आनाकानी के बाद मैं उनके घर जाने को तैयार हो गयी ।
उस दिन से इस बात पर यकीन गहरा हो गया है कि ईश्वर सारे दरवाजे बंद नही करते।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
salute to you
सही बात है
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