आसान नही बदलना

नही होता आसान खुद को बदलना

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 08 Jul, 2021 | 1 min read

कभी कभी लगता छोड़ दूँ सब,

चली जाऊँ इन सबसे दूर बहुत दूर,

जहाँ न सवाल पूछने वाला हो कोई,

ना हो जबाब देने की बाध्यता।

ना निर्णायक बने हुए लोग हो,

न हो घूरती हुई कई जोड़ी आँखें,

बस मेरी मर्जी,मैं अपनी मर्जी की।


 नहीं कोई रीतियों के निर्वहन की जिम्मेदारी ,

नहीं कोई संस्कारों की दुहाई ,

नहीं कोई मर्यादाओं की अपेक्षा,

बस मेरी मर्जी,मैं अपनी मर्जी की।


जहाँ जी भर कर खुल कर रो सकूँ,

जहाँ छोटे छोटे पलों को भरपूर जी सकूँ,

न हो अपेक्षा कि तुम बहादुर हो,

तुम हिम्मती हो,तुम प्रेरणा हो,

बस एक हो पहचान कि तुम इंसान हो।

जहाँ हो बस मेरी मर्जी ,मैं अपनी मर्जी की।


पर कहाँ होता छोड़ना इतना आसान,

कैसे अनसुना कर दूँ सवाल ,

जिसके उत्तर देने की अनिवार्यता बनी हुई है।

कैसे भूला दूँ उन घूरती आँखों को,

जो तैयार बैठी हैं,मेरी गलतियों को ढूँढने को,

 जितना हम सोचते

 उतना नहीं होता आसान ।


जन्म से घुट्टी पिलाई जाती ,खून में जो घुली रहती,

रगों में दौड़ती है,जड़ों तक पैठी रहती हैं,

 संस्कार रीति सभ्यता तहजीब,

इससे मुँह मोड़ना नहीं होता आसान।


बनना होता हिम्मती , रखनी होती है मुस्कान,

छुपाने होते आँसू, लगाने होते ठहाके,

ताकि किसी को जीने की वजह मिल जाएं।

बस शायद इसलिए नहीं होती,

मेरी मर्जी और मैं अपनी मर्जी की।

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Ruchika Rai

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