कोरोनाकाल सबका जीवन हुआ मुहाल,
जिसे देखो वही दिख रहा खुद में बेहाल,
उम्मीदें टूट रही हारता रहा हर इंसान,
सबके मन में बस घूमता फिरता सवाल।
प्राइवेट नौकरियों पर गिरी थी गाज,
रेहड़ीवालों के बंद पड़ गए थे काज,
मायूसी का घना गह्वर छाया हरजगह,
अच्छे अच्छे के बिखर गए थे सारे साज।
स्कूलों की भी रौनक बंद पड़ी थी,
बचपन भी घरों में कैद डरी डरी थी,
अपनों से भी दूर का नाता बन गया था,
इंसानियत भी डरी सहमी हर घड़ी थी।
इन सब में दिखा एक अच्छा सा काज,
विज्ञान और प्रौद्योगिकी का नया आगाज,
ऑनलाइन कार्यो का होने लगा बोलबाला,
यही बन गया अब हमारा नया साज।
सड़कों पर मोटरों का धुँआ हुआ ठप,
कल कारखानों में भी सब गया खप,
नदियों का जल स्वच्छ सुन्दर हो चला था,
खत्म हो गया था नेताओं का गप्प।
इस तरह कोरोनाकाल में कुछ खोया कुछ पाया,
सुख और दुख को हमने संग में अपनाया,
जीवन को नए नजरिये से जिया सबने मिलकर,
अपने हौसलों का ही बढ़ता रहा हरदम साया।
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