महिला दिवस की सार्थकता

महिला दिवस की सार्थकता

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 27 Feb, 2021 | 0 mins read




नारी सशक्तिकरण के दावे हैं चारों तरफ,

बेटी पढ़ाओ और बेटी बढ़ाओ के वादे हैं चारों तरफ,

महिला विकास की बातें भी हो रही,

भाषण गोष्ठी जलसे की है तैयारी,

पर इन सबके बीच जरूरी है मुद्दा गुम हुआ,

नारी अस्मिता के रक्षा की बात हुई बेमानी।

कर्तव्यों को याद है दिलाया जाता बार बार,

अधिकार के नाम पर सभ्यता और रीति रिवाजों की दी जाती है दुहाई।

प्रेम और सम्मान को तरसती है रह जाती,

खुद को होम करने को दिखती है विवशता और लाचारी।

प्रगति के नाम पर जिम्मेदारियां निभाती हैं,

घर दफ्तर दोनों जगह ही अपने झंडे गड़वाती हैं,

अंतरिक्ष से लेकर समुन्द्र तल तक कीर्तिमान बनाती हैं,

पर घर की देहरी में फिर वही रोबोट बन जाती हैं।

समाज और परिवार का मान रहे ,इसके लिए आदर्श बनाती हैं,

संस्कृति के निर्वहन की पूरी जिम्मेदारी उठाती हैं,

पर फिर भी जमाने की बुरी नजर से कहाँ बच पाती हैं।

शरीर से अलग रहकर जब उनको मान मिलेगा,

उसके तन को नही देखकर मन को सम्मान मिलेगा,

महिला दिवस की सार्थकता तभी होगी,

जब दिन विशेष को नही हर दिन उन्हें सम्मान मिलेगा।


रूचिका राय,सिवान बिहार

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