जब भी थोड़ा सम्भली,
जिंदगी ने एक नई चोट दी।
जब भी हँसने की वजह ढूंढी,
जिंदगी ने रोने के कई कारण दिये।
उफ्फ जिंदगी तेरे इतने सितम के बाद
ये चोट अब नही सही जा रहे।
बड़ी आसानी से लोगों ने जीने का नजरिया दिखाया,
हमने भी उसी आसानी से हर नजरिये को अपनाया।
टूटने की हजारों वजह के बीच में
खुद को जोड़ने की कोशिश हर बार सीखाया।
समेटते रहे खुद को हर हाल में
ये हिम्मत मनोबल हमने हर बार आजमाया।
पर अब ये दर्द सहा नही जा रहा,
जहर जिंदगी का पीया नही जा रहा।
या तो रब दर्द से निजात दिला,
या साँसों को निजात दिला।
टूटकर बिखर जाऊँ इससे पहले कुछ करिश्मा दिखा।
बस इतनी सी इल्तिजा है कि जीने की वजह मुझको दे जा,
या जिंदगी से जिंदगी ले जा।
Comments
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अप्रतिम
शुक्रिया दीपाली mam
अनुपम रचना
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