प्रेम

प्रेम जीवन

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 19 Jun, 2021 | 1 min read

प्रेम जीवन के लिए जरूरी,या प्रेम ही जीवन।

अनुत्तरित प्रश्न या ढूढता मन अनुकूल उत्तर।

प्रेम नही है,प्रदर्शन शब्दों का सिर्फ,

या फिर साथ जीने मरने की कसमें

या फिर जीवन के हर कदम में साथ चलना।

प्रेम है परवाह ख्याल फिक्र

सदा ही देने की चाहत

या दो पल भर की खुशी ,या जीवन भर का विश्वास।

प्रेम जीवन के लिए जरूरी या प्रेम ही जीवन।

माँ का बच्चे के प्रति होता जो प्यार

वह सदैव ही बना अतुलनीय अनमोल

जहाँ सिर्फ परवाह ख्याल फिक्र से शुरू होकर

बढ़ती जाती है सारे मनोभावनाएँ।

पिता का प्रेम मौन होकर भी होता है मुखर,

हर सुख सुविधा को पुत्र को देने की कोशिश

अतुलनीय वह प्यार ,वह समपर्ण।

मित्र की मित्रता में जो छुपा प्यार,

जहाँ हो तकरार नोंक झोंक फिर भी परवाह

यह भी होता है प्यार।

पति पत्नी,प्रेमी प्रेमिका के प्यार का आधार,

सर्वस्व समर्पण की चाह।

और इस चाह के बदले चाह फिर कहाँ रह गया प्यार,

वही बना व्यापार।

प्रेम सम्पूर्ण जगत के लिए 

जीवंतता का दिखलाये मार्ग।

प्रेम निश्चल निर्मल पवित्र सा एहसास।

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