क्या तुमने कभी पढ़ा है मौन को,
या फिर कभी तुमने जानना चाहा है
ह्रदय के अंदर चल रहे उथल पुथल को,
क्या कभी तुमने महसूस किया है,
कितना मुश्किल होता आँसूओं को
परे धकेल कर मुस्कुराना।
जिंदगी जब मरने की हद तक हो जाये
उसके बीच जीने की वजह ढूढना।
छोड़ो,तुम्हें फुरसत ही कब मिली होगी
अपने दायरे से बाहर निकलने की।
खुशी का पैमाना तो तुमने खुद से निर्धारित कर दिया,
मुस्कुराता हुआ चेहरा,
चेहरे के ऊपर एक चमक,
रोटी कपड़ा मकान।
या फिर दुख के कारण भी तुमने सोच लिए होंगे,
परिवार, पति ,बच्चों का नही मिले साथ।
पर वाकई ऐसा है क्या?
जरा रुकना,ठहरना और सोचना।
आगे बढ़ जाने की होड़ में,
पीछे की ओर खड़ा रहना वो भी अकेले
कितना कष्टकारी होता है।
जहाँ ह्रदय की बात बताने के लिए
शब्द का सहारा लेना पड़ता है।
जहाँ आसपास अपनों से घिरे रहने के बावजूद,
दिल के जख्म को खुद से छुपाना पड़ता है।
और इन सबसे ऊपर
जहाँ हर बात के जबाब में यही सुनने को मिलता
तुम वाकई खुशकिस्मत हो।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.