बात उन दिनों की है जब आठवीं कक्षा में पढ़ती थी।हमारी एक हिन्दी की मैडम हुआ करती थी,नाम था उनका वर्तिका खंडेलवाल।मुझे बचपन से ही हिन्दी विषय में रुचि थी और उस विषय में रुचि के कारण उस विषय के शिक्षक से भी आत्मीयता स्वावभाविक थी।परंतु मैं कितना भी अच्छा करूँ अपने मासिक परीक्षा में 25 में से 22 -23अंक ही क्यों न प्राप्त करूँ,मुझे मेरी मैडम की तरफ से प्रोत्साहन के शब्द नही मिलते थे,उल्टे ही ज्यादा बात करने अपने काम पर ध्यान नही देने के लिए डाँट ही मिलती थी।चूँकि मैं छात्रावास में रहती थी तो उनकी cctv वाली दृष्टि 24 घंटे मुझ पर रहती थी।इन सबके कारण मैं दुखित भी रहती थी और मैडम के मुख से प्रशंसा के शब्द सुनने के लिए प्रयासरत।तभी 10 वीं कक्षा के प्रारंभ में ही उनका तबादला हो गया।उनके लिए मेरे मन में कितनी सारी भावनाएँ थी जो मैं कह नही पाईं।उनके जाने के बाद मैने उन्हें पत्र भेजा,मुझे यकीन था कि जबाब तो नही आयेगा क्योंकि मुझे लगता था कि मेरे प्रति मैडम के मन में एक अच्छे छात्र की छवि नही है।
परंतु अप्रत्याशित रूप से मैडम का पत्र आया,जिनकी कुछ पंक्तियाँ मेरे लिए रेगिस्तान में जल समान थी।उन्होंने लिखा था कि "मैं तुम्हें डाँटती थी क्योंकि मुझे तुम्हारी क्षमताओं पर भरोसा है और मैं तुम्हें बेहतर बनाना चाहती थी।तुम अपने स्वास्थ्य को लेकर जो परेशान और नकारात्मक सोच रखती हूँ ईश्वर का ध्यान दो की तुम्हें लाखों लोगों से बेहतर बनाया है,वरना वह चाहे तो बहुत कुछ कर सकता।
अपनी कद्र करना सीखो,जब आप खुद की कद्र करते तभी दूसरे भी आपकी कद्र करते।अपनी कीमत खुद तय करो, बाजार में 20₹ में बिकने वाली किताब की कोई 30₹देकर नही आता।
ठीक वैसे ही खुद को दीन हीन बनाओगी तो दुनिया तुम्हें वैसा ही बनाएगी।
इसलिए अपनी कद्र करो।
ये पंक्तियां मेरे जीवन में प्रेरणास्रोत बनकर मेरे मन में रच बस गयी।आज जब भी कदम डगमगाते हैं मैडम की ये पंक्तियाँ बरबस मेरे जेहन में आ जाती हैं।
और आज मैडम मेरी सच्ची पथप्रदर्शक और सहेली बनकर हमेशा मार्गदर्शन करती हैं।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice
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