भावनाओं से लबरेज,
खुद से ही संघर्षरत
पीढ़ियों को सहेजती
रीतियों को सँभालती
खाई को है पाटती
सभ्यता को बचाती
संस्कारों को जिंदा रखती
सपने को मारती
त्याग सहनशीलता सब्र की मिसाल बनी
है ये नारी।
आँसूओं को छुपाती
बेवजह ही मुस्कुराती
जिम्मेदारियों को निभाती,
जमाने की चाल में चाल मिलाती,
बच्चों की ढाल बनी,
पुरुष के कंधे का सहारा लिए,
घर बाहर दोनो जगह ही
अपनी पहचान बनाती
खुद के अस्तित्व के लिए
आत्मसम्मान के लिए
लड़ती ही जाती
है ये नारी।
अपनों के लिए सपनों को छोड़ती,
सारी मिथ्या परंपराओं को तोड़ती,
रिश्तों को जोड़ती,
हवा का रुख अपनी तरफ मोडती
आधुनिकता का लबादा ओढ़े हुए भी,
प्राचीनता की पहचान बतलाती,
है वह आज की नारी।
कोमल है कमजोर नही
है वो आज की नारी।
Comments
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नारी को समर्पित खूबसूरत कृति
Thanks Sandeep ji
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