विकास

विकास

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 21 Apr, 2022 | 0 mins read



धन दौलत शोहरत से होती है मिताई,

रिश्ते नाते दूर हुए उनसे न बन पाई,

प्रेम,सहयोग दया का मन में नही भान,

ये कैसी फ़ितरत हमने है अपनी बनाई।


कुर्सी का है नाम यहाँ कुर्सी से सम्मान,

कुर्सी वाले को ही मिलता है स्थान,

दया धर्म और इंसानियत कौन समझता है

कुर्सी वालों से रिश्ता इतना लो जान।


विश्वास यहाँ पल भर में टूटे दौलत के नाम पे,

लालच यहाँ बढ़ी हुई है हर इंसान के काम पे,

अपने मतलब के लिए यहाँ बदले रिश्ते नाते,

क्षणिक सफलता मिले जो थिरकते जाम पे।


सब्र संतोष का नही बसेरा धुन एक ही जाना,

आगे बढ़ते ही रहना चाहे पड़े हमें पछताना,

है बसा मन में कुटिलता द्वेष दम्भ का बोलबाला,

कैसे विकास हो सबका क्या खोना क्या पाना।



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Ruchika Rai

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