रिश्ते

रिश्तों की दुहाई

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 23 Jun, 2022 | 1 min read

तुम हाँ तुम 

आज किस रिश्ते की दुहाई दे रहे हो?

किसे सगा मानने का दिखावा कर रहे हो?

किससे उम्मीदें जोड़ रहे हो?

हाँ तुम से ही पूछा मैंने...

मैं इंसान हूँ भगवान नही

मेरे भी सब्र का पैमाना छलकता है।

मुझसे भी गलतियाँ होती हैं

मुझे भी क्रोध आता है।


अरे हाँ तुम तुमसे ही कह रही हूँ,

जिसे जिंदगी का सबसे बड़ा कांटा समझा तूने

जिसे अपने चाँद सम जीवन पर

दाग से ज्यादा कुछ नही माना।

जो सगे होकर भी तुम्हारे अपने नही थे।

जो सिर्फ तुम्हारे जीवन पर बोझ थे।

आज उनसे ही आस क्योंकर

किस हक से 

प्रेम तो दिया नही कभी

जहर मन में भरा रखा उनके प्रति।

आज उनसे अमृत की आस कैसे।


कितना आसान होता है न 

तुम्हारे लिए

सगे, अपने, पराये, खून से जुड़े रिश्ते

जरूरतों से जुड़े रिश्तों,

लाचारियों के रिश्ते,

बोझ सरीखे रिश्ते,

फिजूलखर्ची कराने वाले रिश्ते,

एकाधिकार जमाने वाले रिश्तों में बाँटना।

जरूरतों के हिसाब से उनका सम्मान करना,

उनको प्यार करना

या फिर उनको अपने आगे पीछे नचाना।

आज फिर जरा उन्होंने स्वयं का सोचा

दर्द तुम्हारे मन में क्यों हुई।


दर्द के हर लम्हें से गुजरकर 

सगे से पराये बनने की जद्दोजहद में

कितनी तकलीफों से गुजरना होता

नही तुम कभी नही समझोगे।

तोहमतें पहले भी लगाई

आज भी लगा रहे।

फितरतन चीजों का कितना सोचना 

क्यों सोचना।

हम पराये बनकर ही खुश हैं।

हाँ तुमसे ही कह रही सगा की जिम्मेदारियों

से हटकर सुकून बहुत है।


तो छोड़ दो मुझे सगा साबित करना

हाँ तुमसे ही कह रही

रहने दो न मैं दूर होकर ही राहत में हूँ।

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Ruchika Rai

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