काली रात

गहरी काली रात

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 15 Dec, 2021 | 0 mins read



गहरी काली रात मध्य तुम आगे कहाँ तक जाओगे,

आगे जाकर भी तुम भयावह अंधकार को पाओगे।

दर्द तीव्रतम पीड़ा असहनीय किसका दोष कहे,

अपने कर्मों का फल बोलो कैसे नही पाओगे।

जीवन डगर है बड़ी कठिन शूल बिछे हैं पथ में,

सम्भल सम्भल जो न चले काँटे चुभे हैं पग में,

इन शूलों से घबड़ाकर तुम बोलो कैसे रुक पाओगे,

जीवन डगर है ध्येय अगर बढे चलो डगमग डगमग।


जीवन सफर है उलझन बहुत राह खड़े हैं प्रियतम,

पग विचलित हो मन में है तड़प संग रहे बन साजन,

है अधर मुस्कान आँखों में कशिश संग मीठी बोली,

रोक रहे बढ़ते कदम कैसे बढ़े आगे की तरफ।

जब दिल की लगन बढ़ाती है अगन मन में कभी,

तब नजर चुरा तोड़े हैं दिल आज के बन प्रियतम।

इन बाधाओं में न उलझ कर भावनाओं पर नियंत्रण,

है लक्ष्य पर जिसकी मीन नजर वही सफल इस जीवन।



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