वो बरसात की अँधेरी रात थी।बादलों की गर्जन,बिजली की चमक,और मूसलाधार बारिश र्च रहकर डरा रही थी।
सुधा घर में अकेली थी,एक तो अकेलेपन का खौफ दूजा उसके मम्मी पापा जो चार बजे तक आने को कहकर गए थे रात के 9 बजे तक नही पहुँचे थें।
यह भी उसके डर और चिंता का कारण था।कहते हैं न जब व्यक्ति परेशान हो तो नकारात्मक विचार ही मन में आते हैं।
सुधा के साथ भी यही समस्या थी उसे अनहोनी की आशंका लग रही थी,जिसके कारण वह बहुत व्यग्र थी।
आँधी के कारण बिजली भी नही थी और फ़ोन का नेटवर्क भी गायब था।
कुल मिलाकर परिस्थितयां बिल्कुल ही उसके अनुकूल नही थी।
नींद आँखों से कोसों दूर थी।थोड़ी सी आहट पर वह चौंक जाती थी कि कही उसके मम्मी पापा तो नही पर फिर निराश होकर वह आकर सोफे पर बैठ जाती थी।
ऐसे ही इंतजार करते करते 12 बज गए ।अब उसे वाकई डर सताने लगा था।
उसने फ़ोन लेकर देखना चाहा था तो देखा कि नेटवर्क आ गया है।वह बहुत खुश हुई जैसे ही उसने नंबर डायल किया तब तक दरवाजे की घंटी बजी।वह दौड़ कर जाकर दरवाजा खोल दी।
हड़बड़ाहट में उसने पूछा भी नही था कि कौन है और सामने एक अजनबी को देखकर डर गई।
उस अजनबी ने पूछा आप सुधा हैं?
उसने बोला है पर माफ कीजिये आपको पहचानती नहीं ,ऐसा कहकर उसने दरवाजा बंद करने की कोशिश की ।तब उसने जल्दी में बोला मैं सुधीर रास्ते में आपके पापा की गाड़ी पलट गई थी।खैर घबड़ाने वाली कोई बात नही,मम्मी को चोट लगी है पर आपके पापा ठीक हैं।
बाहर गाड़ी में है चलिये ले आइये।और वह दौड़ते हुए गाड़ी तक आईं।उसके पापा ने बोला बेटी घबड़ाने की कोई बात नही,पहले से बेहतर हूँ इन्होंने समय पर आकर हमारी जान बचाई।
सुधा सुधीर की तरफ एहसानमंद नजरों से देखते हुए शुक्रिया कहा और मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा कि शुक्र है इंसनायित अभी जिंदा है।निराश होने की जरूरत नही है।
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