अपनी ही धुन में मगन,
अपनी ही दुनिया में व्यस्त
कहाँ सुन पाते किस टूटे दिल की आवाज,
किसी खनकती हँसी के पीछे का दर्द,
किसी मेकअप पुते चेहरे के पीछे की उलझन
या फिर किसी बोलती आँखों का दर्द
वाकई ये कनबहरे लोग।
जैसे पत्तियों की सरसराहट,
जानवरों की आहट,
या हवाओं की फ़रफराहट,
या चिड़ियों की चहचहाहट,
सुनने के बावजूद समझ से परे होती।
ठीक वैसे ही
आज मन के अंतर्द्वंद्व को
दूसरों की पीड़ा को,
दूसरों की कसमसाहट
उनके समझ से परे होती,
दरकते हौसलों का दर्द,
चटकते विश्वास की चोट,
इसलिए सुन के भी अनसुना करते
ये कनबहरे लोग।
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