शिक्षक

शिक्षक बनना कहाँ आसान

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 516
Ruchika Rai
Ruchika Rai 19 Oct, 2021 | 1 min read

शिक्षक बनना कहाँ आसान होता है

कुम्हार की तरह अनगढ़ माटी को

थाप कर एक आकार देना होता है।

व्यवस्थाओं के जाल में उलझकर,

विचारों के प्रवाह को रोकर,

संवेदनाओं पर बाँध लगाकर,

सबक रोज नया सिखाना होता है।

उससे पहले 

आँखों के कौतूहल को पढ़कर

मन की विवशता को समझकर,

मजबूरियों की फेहरिस्त में से

कुछ गैरजरूरी को छाँटकर,

मन में पढ़ने और सीखने के नये

जज्बे का विकास करना होता है।

जाति के आधार पर छाँटकर,

दलित पिछड़ा और सामान्य वर्ग में बाँटकर,

लाल पीले हरे कार्ड को अलग करके,

गैरजरूरतमंद को जरूरतमंद बनाकर

शिक्षा का आदर्श स्थापित करना होता है।

शिक्षक बनना कहाँ आसान होता है।

चुनावी समीकरण से दूर रहकर

चुनाव करवाना

वोटरलिस्ट को अद्यतन करवाना,

मध्याह्न भोजन का गणित बनाकर,

सरकार के आय व्यय के कागज को दुरुस्त कर

बच्चों को कुछ नया सिखाना होता है।

रोपनी ,कटनी के बचे हुए समय में

मेला हाट के बाद में

मौज मस्ती के बाद 

खेल खेल के बीच में उन्हें नया सिखाना होता है।

शिक्षक को उम्र से पहले तजुर्बेकार बनकर,

कभी चंचल बच्चा बनकर,

कभी माँ की तरह पुचकारकर

कभी पिता की तरह धमकाकर,

कभी मित्र की तरह हँसकर और हँसाकर

नये शब्द वाक्य से परिचय करवाना होता है।

शिक्षक बनना कहाँ आसान होता है।

0 likes

Support Ruchika Rai

Please login to support the author.

Published By

Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.