मन मरघट

मन मरघट

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 30 Jan, 2022 | 0 mins read

कही मन मरघट न बन जाये,

इसीलिए संवेदनाओं को जीती हूँ,

भावनाओं को महसूस करती हूँ,

दर्द में तड़पती हूँ

और खुश होती हूँ तो हँस लेती हूँ।

कही मन मरघट न बन जाये,

रोज ख़्वाहिशों के न पूरे होने पर।

अधूरी इच्छाओं की कश्मकश में,

कल्पनाओं के हकीकत में न बदलने पर।

इसलिए कभी बेवजह गुनगुनाती हूँ,

कभी बेवजह बतियाती हूँ,

कभी बेवजह ही खुद को सँवारती हूँ,

और कभी बेवजह ही

स्नेह लुटाती हूँ,

प्रेम बरसाती हूँ।

कही मन मरघट न बन जाये,

इसलिए ही भरोसे की कश्ती पर सवार होकर

जिंदगी के समुंदर में उतरती हूँ,

कभी डर के साये में बैठती हूँ,

कभी बेलौस ,बिंदास ,बेबाक होकर

हर मुसीबत को पार करती हूँ।

मन का मरघट होना,

सबसे बड़ी त्रासदी है।

इसलिए खुद को इससे बचाने

का हरसंभव प्रयास करती हूँ।

दुआओं की तलाश करती हूँ,

रब से फरियाद करती हूँ।

बस मन मरघट न बन जाये।

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