रंग बदलती दुनिया

रंग बदलती दुनिया

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 07 Apr, 2022 | 0 mins read

इस रंग बदलती दुनिया के कोई चाल नही हम जाने,

जितने अपने से लगते थे वही हुए सदा बेगाने,

रंग प्रेम का लाल जो हर दिल पर छाया था,

ईर्ष्या और नफरत के काले रंग से रंगे उस दिल को कैसे पहचाने।


सफेद शांति का मार्ग अपनाकर जीवन सरल जो करना चाहा,

हरे रंग की हरियाली से मन हर बार ही समृद्धि को ललचाया,

केसरिया सा शौर्य दिखाकर अपना परचम जो लहराना चाहा,

स्निग्ध प्रेम की गुलाबी सा हर जीवन समर्पण को

आगे बढ़ पाया।


शुभता का विश्वास दिलाया जब जब पीले रंग ने,

पीली हल्दी ,पीले सरसों सा मन बसंत सम उल्लसित हुआ,

शाम की सिंदूरी आभा मानस पटल पर अंकित होकर,

उगते सूरज की लालिमा से नव जीवन को गतिमान बनाया।


नीला नभ विस्तृत उड़ान भरने को आतुर किया जब मन को,

नदियों के निश्छल निर्मल जल में भी नीलापन सा प्रेम दिखलाया।

सुखद सुनहले भविष्य की कामना में प्रयासरत रहा जब मन,

बालों पर छाई चांदी ने उम्र के तजुर्बे का सदा ही एहसास कराया।


इस रंग बदलती दुनिया में रंग हजारों बिखरे लगते हैं,

पर मन के अंदर के रंगों को कोई सच में पहचान न पाया।

कैसे कैसे रंग धरा से लेकर अम्बर तक फैले हुए हैं,

ए काश की सतरंगी इंद्रधनुषी रंग सा जीवन सबका बन पाया।

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