हिंदी भाषा सहज,सरल स्पष्ट होते हुए भी आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है।हिंदी को जो सम्मान मिलना चाहिए वह नही मिला है ।
आजादी के 75 वर्ष बाद भी हम अपनी भाषायी अस्मिता को बचाने के लिए संघर्षरत हैं।
कभी तथाकथित आधुनिकता की बलि चढ़ती है हमारी ये भाषा ।तो कभी क्षेत्रीयता के नाम पर इसका गला घोंट दिया जाता है।
सबसे बडी विडंबना हमारी हिंदी के साथ है कि भारी भरकम फी देकर अपने बच्चे को अंग्रेजी मीडियम विद्यालय में हम पढ़ाना चाहते हैं और अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों के बीच अपने रुतबे का धौंस दिखाते हैं।और वहीं हिंदी माध्यम में पढ़ाने को हेय दृष्टि से देखते हैं।
बच्चों की शिक्षा की जहाँ शुरुआत क ख ग से होनी चाहिए वहीं ए बी सी पढ़ाते हैं पहाड़ा नही टेबल सीखाते हैं,कविता नही rhymes सीखाते हैं।
तो सबसे पहले हमारे मन मस्तिष्क में हिंदी को लेकर संकुचित सोच फैली हुई है उसे मिटाने की जरूरत है।
हिंदी को सम्मान दिलाने में आड़े आने वाला दूसरा कारण सरकार का ढुल मुल रवैया है।सरकार को हिंदी को जो सम्मान देना चाहिए वह नही दे पा रही है।आज भी न्यायालय में हिंदी में कोई कारवाई नही होती,जबकि हिंदी में ही ये कारवाई होनी चाहिए।
आज भी गाड़ियों में हिंदी में लिखे हुए अंकों के प्लेट पर चालान काट दिए जाते हैं,जो कि सरासर गलत है।
किसी भी नौकरी ,साक्षात्कार में भी अंग्रेजी को ही विशेष महत्व दिया जाता है।आज जीविकोपार्जन के लिए बढ़िया नौकरी के लिए अंग्रेजी को महत्व दिया जाता है।
अंग्रेजी को विद्वता से जोड़ दिया जाता है।
अतः सरकार को चाहिए कि सभी प्रशासनिक कार्यों में हिंदी को ही महत्व दें ताकि हिंदी को सम्मानज़नक स्थान मिले।
यद्धपि हिंदी सरल सहज सुग्राह्य भाषा है परंतु हिंदी को क्लिष्ट कहकर इससे पल्ला झाड़ लिया जाता है,जबकि अनवरत प्रयोग नही होने के कारण यह कठिन लगती है ।जबकि हिंदी जैसी मधुरता किसी अन्य भाषा में नही।
अतः अब समय आ गया है कि हिंदी को सम्मानजनक स्थान दिलवाने का प्रयास भर न किया जाय बल्कि सम्मानजनक स्थान दिलवाया जाय।
एक दिन हिंदी दिवस न मनाकर हर दिन हिंदी का हो।
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