पिता

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 25 Apr, 2022 | 0 mins read

तपती जेठ की दुपहरी में शीतल

मंद बयार से होते हैं पिता।

हाड़ कंपकपाती ठंड में अलाव

से होते हैं ये पिता।

खुद सारे ताप सहते पर बच्चों के

ढाल बनकर खड़े रहते हैं पिता।

बुढ़ापे के दहलीज़ पर जब उनका वजूद

एक सहारे की तलाश करता।

उस वक़्त भी मुश्किल क्षणों में

सहारा बनकर खड़े होते हैं पिता।

कठोर अनुशासन का पाठ पढ़ाते हुए

ऊपर से कठोर बनकर

मजबूती दिखा मजबूत बनाते हैं पिता।

कभी गलतियों पर डाँटते,

कभी कठोर सजा सुनाते,

जिंदगी के कठोर राहों पर चलना सीखाते हैं पिता।

प्रेम प्रदर्शन में कमजोर,

लाड़ उठाने में ढीले,

मेहनत से हर छोटी बड़ी जरूरत को

पूरा करने की कोशिश में जुट जाते हैं पिता।

उम्र के आखिरी पायदान पर खड़े,

बच्चों के मित्र बनने की कोशिश में लगे

समझौतावादी हो जाते हैं पिता।

युवा पुत्र या पुत्री के चेहरे को पढ़कर

उनकी परेशानियों को समझने वाले,

उनके दुख में व्यग्र हो जाते हैं पिता।

अभी भी स्वयं से पहल करने से कतराते,

माँ को ही अपने और बच्चों के बीच

संवाद का पुल बनाते हैं पिता।

अपने नाती पोतों में अपने बच्चों का

अक्स तलाशते

एक मजबूत आधारस्तंभ होते हैं पिता।

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Ruchika Rai

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