प्रबल चाह

प्रबल चाह

Originally published in hi
❤️ 1
💬 3
👁 381
Ruchika Rai
Ruchika Rai 27 Jun, 2021 | 1 min read


असीमित इच्छाएँ ,अनगिनत सपने

प्रबल चाह उनकी पूर्ति की।

रिश्तों से परिपूर्ण हो जीवन,

नही कभी द्वेष रहे जीवन की।

प्रेम पूरित हो जीवन अपना सदा,

यही छोटी सी दुआ मेरे मन की।

हारी बीमारी से न जूझे कभी कोई,

रोगमुक्त हो हर तन ही,

पीड़ा के अतिरेक से जूझे न कोई मन,

बस यही चाह मेरे मन की।

कोई हो ऐसा जो समझ सके हरपल

हमारे ही मौन को।

नही मुखर होना पड़े कभी भी,

किंतु,काश ,परंतु से मुक्त जीवन हो।

प्रबल चाह संवेदनाओं को समझूँ मैं

जीवन के अंतिम क्षण तक।

काम आ सके यह तन मेरा सदा,

 कष्टकारी पलों में हर जन तक।

 ढाल बना मुस्कान से हौसला दूँ,

यही पूँजी सदा काम आएं।

अभेद्य हौसलों की दीवार बनकर,

हर जीवन को सबल बना जाएं।

बस यही प्रबल चाह मेरे मन की,

इंसानियत का मर्म समझूँ।

इंसानियत का मर्म समझाऊँ।

बन प्रेरणा सदा ही काम सभी के आऊं।



1 likes

Support Ruchika Rai

Please login to support the author.

Published By

Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    सुंदर प्रार्थना

  • Charu Chauhan · 4 years ago last edited 4 years ago

    अच्छी रचना ?

  • Deepali sanotia · 4 years ago last edited 4 years ago

    Nice

Please Login or Create a free account to comment.