कक्षा में संदीप के प्रवेश करते ही बच्चे खुसर फुसर करने लगे थे।वह शहर का एक प्रसिद्ध कॉन्वेंट स्कूल था,जहाँ दाखिले के लिए बड़े बड़े अफसर,व्यवसायी ,नेता ,रसूखदार अलग से रिश्वत देते थे,तो स्वावभाविक रूप से बच्चों में भी वो दर्प आ ही गया था।
लेकिन संदीप स्कूल के बाहर खोमचे लगाने वाले का बेटा था।उसकी मेधा शक्ति और सरकार द्वारा गरीब बच्चों के लिए दाखिले के आरक्षण की बदौलत उसका नामांकन उस स्कूल में हो गया था।
चूँकि बहुत सारे बच्चे उसे बाहर अपने पिता के साथ देख चुके थे तो वह उसके कक्षा में आने पर भुनभुना रहे थे।
शिक्षक के कक्षा में प्रवेश करते ही सारे बच्चे शांत हो गए थे,पर कोई भी संदीप को अपने पास बिठाने को तैयार नही था क्योंकि इसमें उनके प्रतिष्ठा का हनन जैसा महसूस हो रहा था।
शिक्षक के कड़े रवैये के बदौलत एक बच्चा मुश्किल से बिठाने को तैयार तो हुआ परंतु वह भी मानो बेमन से।
शिक्षक के चेहरे पर मायूसी और उदासी थी,समाज के इस विसंगति और उसके कारण रवैये में हो रहे परिवर्तन से।
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संदेशप्रद लघुकथा
Thanks Sandeep ji
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