ये मनभेद की गहरी खाईं

तलाक क्यों

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 10 Jul, 2022 | 0 mins read


रोहित और रूपा की अरेंज मैरिज थी।पर ऐसा भी नही था कि किसी दबाब में आकर दोनों ने शादी की हो।दोनों ही आपसी सहमति और स्वीकृति के बाद इस शादी के लिए तैयार हुए थे।

रोहित एक मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर था,अच्छी तनख्वाह,शहर में अपना फ्लैट ,गाँव पर खेती बाड़ी के लिए जमीन ,कमाऊ माता पिता का बेटा,देखने में सामान्य।कुल मिलाकर एक लड़की की सुखद गृहस्थी के सारे ही गुण तो थे उसके पास।

रूपा की माँ ने एक मेट्रोमोनियल साइट्स से उसे ढूंढा, फिर दोनों परिवारों के बड़ों के बीच विचारों का आदान प्रदान हुआ,जब दो परिवारों की आपसी रजामंदी हो गयी तब रूपा और रोहित को एक दूसरे को जानने समझने के लिए तीन चार महीने का वक़्त मिला और फिर रोहित और रूपा ने स्वीकृति की मुहर लगा दी।

दोनों ही परिवारों में हर्ष का माहौल था,रूपा जहाँ अपने घर की छोटी और लाडली बेटी थी वहीं रोहित घर का बड़ा बेटा था।

दोनों परिवारों का इस शादी के लिए बड़ा शौक था।खूब धूमधाम से शादी संपन्न हुई।

रूपा और रोहित जहाँ भी जाते राम सीता की जोड़ी कहलाते।

पर किसे मालूम था कि ये राम और सीता की जोड़ी बस दिखावे के लिए हैं।

रूपा जो की मेट्रो सिटी में पली बढ़ी थी,उसे परिवार,संस्कार,मर्यादा,रीति रिवाज इन सबसे कोई मतलब नहीं था।

वह स्वयं के जीवन की तुलना फ़िल्म के पात्रों से करती थी,उनकी तरह रहना,पहनना ओढ़ना सब कुछ उसे करना था और करती भी थी,पर इन सबके बावजूद रोहित जो उसके लिए सारी सुख सुविधाएं उपलब्ध कराता था उसके लिए मन में इज्जत और प्रेम का भाव नगण्य था।

इन सबके कारण नई नई शादी में जो प्रेम और आकर्षण होता वह कही भी नही था।

काम करने की जब बात होती तो रूपा तुरंत कहती मैं औरत हूँ इसका मतलब मैं ही करूँ,और इस प्रकार हल्की तकरार कब बड़ी बनती गयी पता ही नही चलता।

दोनों एक दूसरे से लड़ते झगड़ते,आपसी खींचतान,गाली गलौज ने घर के माहौल को घर रहने ही नही दिया था।

दुनिया के सामने वे दोनों एक खुशहाल युगल के रूप में थे मगर घर के अंदर एक दूसरे के लिए बिल्कुल अनजान।

रोहित और रूपा की जब भी लड़ाई होती ,रूपा रोहित के पूरे परिवार को गाली देना शुरु करती।

रोहित उससे बार बार कहता ,रूपा मेरे सब्र का इम्तिहान मत लो,जिस दिन मेरे सब्र का बाँध टूट जाएगा उस दिन के बाद से दुनिया की कोई ताकत हम दोनों को जोड़ नही पाएगी।

पर विचारों का मतभेद,जिम्मेदारियों से भागने की कवायद,प्राथमिकताओं का अंतर स्वयं को श्रेष्ठतर साबित करने की होड़,अहम ,रियल लाइफ और रील लाइफ के अंतर को न समझ पाना,त्याग, समर्पण और समझौतावादी दृष्टिकोण की कमी इन सबने उनके जीवन को नरक बना दिया था।

आज दोनों ही न्यायालय में एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं,आरोप और प्रत्यारोप का दौर जारी है।

मानसिक आर्थिक और सामाजिक परेशानियों का चौतरफा वार जिंदगी के सुकून को छीन चुका है।

वह चाहते हैं कब ये सब खत्म हो और एक दूजे से मुक्ति मिले।

और विवाह नामक संस्था और संस्कार के प्रति मन में एक वैराग्य आ चुका है।

काश की जिंदगी में ये तलाक का दौर नही होता।

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Ruchika Rai

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