नदी,तालाब ,पोखरों का जल सूख रहा है,
और भू जल का स्तर नीचे गिरता जा रहा है,
कभी अतिवृष्टि कभी अनावृष्टि कभी अल्पवृष्टि,
कही तापमान बढ़ रहा है,कभी तापमान घट रहा है,
कभी अकाल कभी सूखा, कभी बाढ़
और मानव विकास के पथ पर बढ़ रहा है।
कही खनिज संपदा लुप्त हो रही,कही कुदरत की धरोहर विलुप्त हो रही है।
कही कोई पक्षी कही कोई जानवर विलुप्त हो रहा है,
हर तरफ हाहाकार मच रहा है
औऱ मानव विकास के पथ पर अग्रसर हो रहा है।
धीरे धीरे सब कुछ नष्ट हो रहा है,
धरती की उर्वरा शक्ति कम हो रही है,
कभी बीमारी से तो कभी आपदा से
लोग मृत्यु का ग्रास बन रहे हैं
और अभी भी कहते हैं मानव विकास की ओर बढ़ रहा है।
कही कारखाने लग रहे,कही आलीशान भवन बन रहे,
कही सड़कें बन रही तो कही बाजार सज रहे,
पेड़ो को काट कर ऐश्वर्य की वस्तुएँ बन रही,
मगर कोई पेड़ नही लग रहे,
और कहते हैं कि मानव विकास की ओर अग्रसर हो रहे।
आज के दौर में कोरोना महामारी
ताउ ते तूफान का त्राहिमाम,
यास तूफान का कहर,
तभी भी मानव कहाँ चेत रहा है,
वह दर्प में डूबा है
प्रकृति से ऊपर खुद को समझ रहा और
इस प्रकार
मानव विकास के पथ पर बढ़ रहा है।
ये प्रकृति की चेतावनी है मानव के लिए,
अभी भी सम्भल जाओ,
अब न संभलोगे तो कब संभलोगे
प्रकृति लेने पर तुली है
कोई भी मानव नही बचेगा,
और इतिहास के पन्नो पर डायनासोर की तरह एक विलुप्त प्रजाति के रूप में दर्ज होकर रहेगा।
Comments
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Brilliant
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