स्याही

स्याही

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 30 Sep, 2023 | 1 min read

आज फिर मन में उठते

भावनाओं के शोर को

दिल के मचलते जज्बातों को

खामोशियों के पीछे की कहानी को

औऱ ह्रदय में उठती रवानी को

लिख दिया स्याही से कोरे पन्नों पर।

किसी ने आह कहा,

किसी ने वाह कहा,

मगर कहाँ हुई कसर पूरी।

स्याही मचलती रही और भी कुछ लिखने को।


चाँद की दूधिया रोशनी में,

तारों के काफिले थे,

तन्हा दिल और तन्हा सी थी रातें,

बेबसी तारी थी

जुबान खामोश थे

चाहते थे बहुत कुछ कहना और सुनना

मगर वीरानगी सी छाई थी।

फिर एक बार डायरी के उदास पन्नों पर

स्याही बिखरने लगी

और लिख दिया उसने दिल की हर बात।

और फिर स्याही खतम हो गयी।


स्याही जाने अनजाने

बन गयी मीत इस दर्द भरे दिल की

उसने दिया साथ 

तन्हाई के हर आलम में

वह बन गयी सच्ची सहेली

जिसने महसूस किया दिल की हर खुशी

डायरी के संग यारी निभा कर

रंग दिया उसने

हर सफ़हे को

दिल के हर दास्तान से

और निभाया था जिंदगी के हर लम्हें में।

बस यही रही स्याही का

मेरे संग साथ।

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