हाँ वह पुरुष हैं

पुरुष दिवस

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 19 Nov, 2022 | 1 min read

जज्बातों को अपने मन में छुपाते,

दर्द अपना कभी न दिखाते,

धीर गम्भीर बन दुनिया के सामने आते,

परिवार की रीढ़ बन उसे मुसीबत से बचाते,

ये पुरुष हैं,जो अपेक्षा उपेक्षा दोनों का बोझ उठाते।


जब बचपन में पुरुष स्त्री का अंतर नही समझती थी,

हर दुख ,हर व्यथा अपने पापा से कहती थी,

शिकायतों का थामे पुलिंदा,प्रश्न पूछ लेती चुनिंदा,

आवश्यकताओं की लंबी लिस्ट थमाकर

खुद ही स्वयं को आश्वस्त कर लेती थी,

जल्दी ही हर समस्या का निदान पापा कर देंगे।

वह भी तो पुरुष हैं,हाँ वह एक पुरुष हैं।


थोड़ी जब मैं बड़ी हो गयी,

मनमर्जियाँ करने को जब मैं खड़ी हो गयीं,

कभी चचेरे ममेरे फुफेरे और कभी पड़ोस के भाई को अपने संग पाया,

लड़ते झगड़ते बड़े होते रहे हम,

मेरी गलतियों पर उन्होंने मुझे हर बार हड़काया।

उनके संग रहकर मैं निश्चिन्त रहती थी।

हाँ वह भी तो पुरुष ही थे।


स्कूल ,कॉलेज में मिले संगी साथी,

कुछ शरारतें ,कुछ मसखरी,कुछ मस्ती भरी बातें,

स्वयं वह भले कुछ हम सबको कह लें 

मगर हिम्मत नही कोई और कुछ कहकर निकल ले

हाँ वह भी तो पुरुष थे।


गुरु,ताऊ,चाचा,मामा न जाने कितनों ही रिश्तों 

को जाना,

उनके संग मैंने स्वयं को आश्वस्त जाना,

बन ढाल सदा ही मेरे संग वह खड़े रहे,

मौन जुबान थी मगर वह बहुत कुछ कह गए।

हाँ वह भी तो पुरुष थे।


फिर जीवन में कुछ मित्र बनकर आये,

जिनसे हम दिल की सारी बातें कह पाये,

खींची मैंने हम दोनों के बीच एक रेखा,

उस रेखा को पारकर कभी नही वह अविश्वसनीय बन पाये,

उनके सामने मेरा हँसना और रोना,

नही झिझक क्या कहना ,क्या मन में छुपा लेना।

हाँ वह भी तो पुरुष हैं।


कभी ट्रेन, बस में मेरे लिए जगह छोड़ जाते,

कभी जरूरत हो तो आधी रात में भी मेरे लिए खड़े हो जाते,

कभी मुश्किलों में वह हिम्मत बढाते,

कभी प्रेम और सम्मान से जीवन को नजरिया से देखने की चाहत जगाते,

कभी नाउम्मीदी में भी उम्मीद की रोशनी बन जाते।

हाँ वह भी तो पुरुष हैं।


माना कि पुरूष और स्त्री के बीच की विषमता,

कभी पुरुष की तानाशाही कभी झूठा हथकंडा,

आसानी से उनको नही अपना मानता है,

विश्वास और अविश्वास की जद्दोजहद को मन जानता है।

पर फिर भी पुरुष की दृढ़ता और उनका सम्बल,

बढ़ाता है मेरी हिम्मत ,मेरा मनोबल।

इसलिए मेरे जीवन में विशेष स्थान रखते हैं वह पुरुष हैं।

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