कोरोना काल

कोरोना काल

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 08 Jun, 2021 | 0 mins read

संकट काल ,विपदा बड़ी,अँधेरा घना,

साँसों की टूटती जा रही अचानक लड़ी।

ईश्वर का चौतरफा वार,हर तरफ़ हाहाकार,

सरकारी आँकड़े, दावों का सजता बाजार।

सच्चाई को झुठलाने का हो रहा प्रचार,

जनता के दर्द की किसे रह गयी परवाह।

युवा मौतें ,विवश सोचें, अनजाना खौफ,

भविष्य की चिंता किसे, कौन बेकरार।

दर्द की तीव्रता का किसे हो रहा एहसास,

कौन समझे, यह नही आँकड़ों का बाजार।

दुधमुँहे बच्चे हो गए अनाथ, पीड़ा अपार,

अंधकारमय भविष्य ,व्यवस्था पर ये प्रहार।

आँकड़ों के गणित पर, शाबासी ठोंकती सरकार,

पर उस गणित पर कहाँ ठहरते ये अनाथ।

रोजी रोटी पर भी बड़ा गहरा लगा आघात,

भूख ,प्यास से बिलखते रहे कई परिवार।

सरकारी योजनाएं,बढ़ती लूट खसोट,

पर आँखें बंद किये, सो गयी सरकार।

खुद को वातानुकूलित कमरे में बंद कर,

नियम और योजनाएं बनाती जा रही हर बार।

जमीनी हकीकत सब कुछ हुआ नदारद,

जीवन को बचाने की जद्दोजहद हो रही हर तरफ।

घर की अर्थव्यवस्था पर पड़ी भारी है चोट,

महंगी चिकित्सा और आमदनी का घटता स्रोत।

आँकड़ों की बस इतनी सी है दिखती हकीकत,

मृत्यु पर भारी पड़ गयी है सियासत ।

जरा एक बार चेत कर देख ले प्रशासन,

दुधमुँहे अनाथ बच्चे,युवा विधवाएँ।

इतने पर भी न खुल सके आँखें तो फिर देख लें,

उस परिवार की हकीकत जहाँ की नींव हिल चुकी।

छिन्न भिन्न होती संवेदनाएँ, लुप्त होती मानवता,

धिक्कार है इस व्यवस्था पर क्या ऐसी ही होती है सरकार।

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Ruchika Rai

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