मेरी आत्मकथा

मेरे जीवन की घटनाएं

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 11 Apr, 2021 | 1 min read

मैं रूचिका राय,गुठनी सिवान बिहार से प्रस्तुत हूँ आप सबके सामने वैसे तो एक बहुत साधारण इंसान हूँ, फिर भी आज अपनी आत्मकथा लेकर प्रस्तुत हूँ ,आप सभी का सादर वंदन अभिनंदन।

माँ और पापा दोनो ही शिक्षक हैं और मेरी दादी माँ भी अपने जमाने मे शिक्षिका रह चुकी हैं तो शिक्षा को बहुत ही ज्यादा बल दिया जाता रहा है हमारे घर में।मेरी मम्मी जिनकी पढाई लिखाई अपने जमाने में राँची जैसे शहर में हुई तो उनके अधूरे सपनों का बोझ हमारे ही कंधों पर था।तीन भाई बहनों में मैं सबसे बड़ी ,मेरी बहन मुझसे 5 साल छोटी और भाई पूरे 10 साल छोटा रहा है तो एक अनकही जबाबदेही मेरी बन गयी थी कि ऐसे सफर पर चले कि मेरे पदचिन्हों पर चलकर मेरे भाई बहनों को सफलता मिले।

पांचवीं तक कि शिक्षा पास के ही प्राइवेट विद्यालय में हुई,जहाँ मैं ही उदाहरण थी न कोई आगे न कोई पीछे।

फिर मम्मी को चिंता सताई की ऐसा कैसे चलेगा और उन्होंने नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा का फॉर्म भरवा दिया,यही से असली जंग शुरू हुई।मेरे लिए करो या मरो वाली स्थिति थी,खैर करते करते मेरा चयन हो गया।वहाँ मेरा और गणित का 36 का आँकड़ा चलता रहा,इसी बीच स्वास्थ्य संबंधी भी कुछ समस्याओं विकराल रूप धारण कर चुकी थी।10 वीं की परीक्षा देने के बाद स्थिति भयावह होती गयी और एक साल मेरे और किस्मत के बीच जंग चली ,पता नही मैं हारी या जीती पर संस्थागत विद्यार्थी के रूप में पढ़ाई शुरू कर दी,इंटर बीए करने के बाद पिताजी के एक मित्र से कहकर बीएड का फॉर्म मँगवा लिया,जिसकी खबर फॉर्म आने के बाद घर वालों को लगी।

गोरखपुर परीक्षा के दौरान पता चला कि दुनिया बहुत बड़ी है और मैं कूप मंडूक।

लेकिन कहते हैं न ईश्वर सारे दरवाजे नही बंद करते तो बीएड में चयन होने के बाद घर से 10 किलोमीटर के दूरी पर कॉलेज में दाखिला मिल गया।फिर कॉलेज की दुनिया देखने को मिली।

बीएड करते ही बिहार में शिक्षा मित्र के नियोजन का फॉर्म निकला और मैंने जबरदस्ती नियोजन करवा लिया।समय बीतता गया स्थिति सुधरती गयी।

आज मैं 15 वर्षों से अध्यापन का कार्य कर रही हूँ, इस बीच हिंदी से स्नातकोत्तर किया।

थोड़ा बहुत लिखने की आदत स्कूल के समय से ही थी,पर धीरे धीरे इस आदत को मैंने अपने तनाव मुक्ति का मार्ग बनाया और अब छोटी मोटी कविताएं कहानियाँ लिख लेती हूँ, और अब थोड़ी पहचान बढ़ गयी है।

तो बस इतना ही कहूँगी,हिम्मत हो तो जंग जीती जा सकती और अगर न भी जीते तो यह अफसोस नही रहता कि मैंने संघर्ष नही किया।

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