मजदूर

मजदूरी मजबूरी बन कर रह जाती है मजदूर हूं मजबूर भी हूं

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Resmi Sharma (Nikki )
Resmi Sharma (Nikki ) 12 Jun, 2020 | 1 min read


परेशानी हो या आँधी हो दिन रात श्रम करते हैं। 

बोझा सर पे लेकर चलते श्रमिक नहीं थकते हैं।।


ग़रीबी कहो या लाचारी , किस्मत की है मारी । 

तपते तन ,जलते मन व दिल में दर्द रहे भारी ।।

मन से कठोर होकर , मेहनत दिन रात करते हैं ।

बोझा सर पे लेकर चलते श्रमिक नहीं थकते हैं।।


सुलगती साँसें ,मचलता मन छुटते पसीने से ।

चमकता उनका तन ,पाँव के छाले महीने से ।।

आह न निकलती कांटे पाँवों में रोज चुभते हैं ।

बोझा सर पे लेकर चलते श्रमिक नहीं थकते हैं।।


परिवार पालते हैं हर दर्द को सीने से जकड़ते हैं।

सिसकियों को दबाकर वो रोज खुद से लड़ते हैं।।

पसीना बहता है तन से आँखों से आँसू बहते हैं । 

बोझा सर पे लेकर चलते श्रमिक नहीं थकते हैं।।


मौसम भी जब दगा दे जाता आँधी व तुफान से।

आँखों में नमी लेकर वह कहता है भगवान से ।।

भरी गर्मी हो या दुपहरी कभी नहीं वो रुकते हैं ।

बोझा सर पे लेकर चलते श्रमिक नहीं थकते हैं।।

 

निक्की शर्मा रश्मि 

मुम्बई

niktooon@gmail.com

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