दुर्दशा

नारी मन समझना हर किसी में कहां होता। बस स्त्री को भोगने की वस्तु समझना कहीं न कहीं गलत मानसिकता को दर्शाती है।

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Resmi Sharma (Nikki )
Resmi Sharma (Nikki ) 29 Oct, 2020 | 1 min read

मेरी चाहत नहीं की खुले आसमानों में उड़ जाऊँ

ये भी नहीं चाहत की चिड़ियों सी चहचहाऊँ

पर हम भी तो दिलों से मजबूर हैं

बस चाहत है कूछ पल के लिए ही सही

तेरी आँखों में तेरी साँसों में बस जाऊँ

क्यों आखिर... तुम मुझे क्यों घर का महज सामान समझते हो, बिस्तर पर पलभर के लिए पुचकार, दुलार से...... दिल की तड़प...प्यार के लिए जो तरस है.. मिलती है क्या ? क्यों नहीं समझते मेरी चाहत सुनंदा बिस्तर पर पड़ी अपने कपड़े समेटती, आँसू पोछती,अपनी चाहत मन में दबाती..... स्त्री की दुर्दशा,चाहत को समझने में असमर्थ थी।

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Resmi Sharma (Nikki )

resmi7590

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