निराले नट्टू जी

एक हास्य गाथा

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rekha shishodia tomar
rekha shishodia tomar 01 Jun, 2020 | 1 min read

नाम तो उनका दादी ने बड़े प्यार से कुँवर रखा, पर ना आर्थिक स्थिति कुँवर वाली थी ना हरकते।।शहर में रहने वाली बुआ जी इंग्लिश दिखाने के चक्कर मे "अले मेला नॉटी बॉय,प्याला सा नॉटी बॉय" करती रहती और गांव के लोगो ने उनके जाने के बाद नॉटी को अपभ्रंश करके "नट्टू" कर दिया

चपटी नाक,सांवला रंग,और आंखे जोर लगा के खोले तब भी लगता नींद में है।।लेकिन बाहर से नट्टू और अंदर से कुँवर ही थे।।

अपनी ही धुन में रहते,किसी की ना सुनते न समझते, इतनी शैतानी भरी दिमाग मे की घरवाले बोले "चल बाये " तो किसकी मजाल की बाये चला ले,अगला दाये ही चलता।।

खूब पीटते,रस्सी से बांध दिए जाते,पर खुलते ही फिर ढाक के तीन पात।।पढ़ने में बस इतने ही कि पास हो जाते।।होते भी क्यो ना गांव का सरकारी स्कूल,मास्टर जी को समोसे ख़िलायो गृहकार्य से छुट्टी पायो।

स्कूल जाते ही कहाँ थे, घर से निकलते गिल्ली डंडा खेलते,छुट्टी के टाइम घर वापस।।

एक तारीफ जरूर थी कि पिता जी के अलावा इनसे कोई नाराज नही रह पाता,दोस्त तो जान छिड़कते थे।।अब पिता करे भी तो क्या, ना बेटा खेती में हाथ बंटाए ना पढ़ाई करें।।

दोस्त भी अपने जैसे।।

एक बार गांव के पास रेलवे का काम चल रहा था।मंडली ने सोचा कुछ लोहा मिल जाये तो बेच कर चाट पकोड़ी खाई जाए।।पटरी का एक छोटा सा हिस्सा उठाया,दोस्त की साइकल पर रखा और खुद पीछे पीछे चल दिये।।रास्ते मे एक पुलिस वाले ने देखा पटरी का हिस्सा सायकिल पर,बोला"हाँ भाई, बड़ा बिजी लग रा है कहाँ ले जा रा है,कहाँ से लाया है"अब दोस्त घबरा गया मगर नट्टू जी का कॉन्फिडेंस देखिए बोले" हमारे पिताजी रेलवे में है" पुलिसवाला बोला" रेलवे में है तो क्या रेल बेच देंगे" बस उस दिन पहली बार नट्टू जी को पिता के अलावा दूसरे के हाथ का स्वाद मिला।।

एक बार दोस्तो ने सलाह दी की गांव से 3km दूर एक मंदिर में मंगल का प्रसाद चढ़ाने लोग दूर दूर से आते है।।मंदिर के दरवाजे पर बैठ जाओ तो स्वादिष्ट प्रसाद खाने को मिलेगा और अगर कोई बर्फी वाला भक्त आ गया तो वारे न्यारे।।

                      बस नट्टू जी चल दिये,दरवाजे पर बैठ गए।।एक भक्त की पॉलीथिन में से बर्फी जैसा कुछ दिखा, जैसा दोस्तो ने बताया था कि बर्फी वाले के तो पैरो में पड़ जाना,बस आव देखा ना ताव"अंकल जी plzz प्रसाद देदो कह कर पैर पकड़ लिए।।कुछ अंदेशा हुआ ये पजामा और चप्पल तो जानी पहचानी है।।ये अंकल हिल भी ना रहे।।

हाय री फूटी किस्मत ये पिताजी आज कौन सी मनोती मांगने आ गए? पिताजी बड़े आराम से बोले"चप्पल कहाँ है तेरी,? "जी उन्ही पर बैठा हूँ" हकलाते हुए नट्टू जी बोले।।"ठीक है तो पहनो और साईकल पर बैठो" चुपचाप जाके बैठ गए।।पहली बार पिताजी के कहे अनुसार काम किया और फिर भी जो प्रसाद घर जाकर मिला उसके आगे बर्फी,जलेबी सब फेल।।हफ़्तों तक स्वाद आता रहा।  

अगर आपको नट्टू जी के और किस्से सुनने है तो जरूर बताएं।।ब्लॉग को फॉलो करें लाइक करे कमेंट करें।।नट्टू


जी ना बने।।


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