वो लड़की और वो रात

एक रोमांचक रात की कहानी

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rekha shishodia tomar
rekha shishodia tomar 15 Jul, 2020 | 1 min read

दिन का उजाला रात के अंधेरे में तब्दील हो चुका था..लगातार वाइपर चलने के बाद भी सामने का रास्ता देखना मुश्किल हो रहा था।

मैं हॉस्पिटल से निकलते हुए ही समझ गई थी कि आज तूफान आने वाला है..केवल आसमान में ही नही मेरी जिंदगी में भी..

आँखों से उस लड़की का चेहरा हट ही नही रहा था..लग रहा था कार का स्टेयरिंग कोई अनजान शक्ति चला रही थी क्योंकि मेरे हाथ पैर बेजान थे,पर दिल जोरो से धड़क रहा था..इतनी जोर से की लगा छाती फाड़कर बाहर आ जायेगा..

मैं भारती गोयल महिला रोग विशेषज्ञ उम्र 40 साल,इस रात से पहले अपने जीवन और परिवार से पूर्णतया सन्तुष्ट थी

रोज की तरह हॉस्पिटल से लौटते हुए शाम हो चली था..बारिश की बूंदे पेड़ो की शाखायो और पत्तो के साथ मिलकर सड़क के किनारे छोटे छोटे घर बना 

रही थी..

कभी कभी मन करता था कि काश इन घरों के बीच बिना भीगे कुछ पल गुजार सकूं..पर बिना भीगे??सम्भव नही था और भीगना मैं अफ़्फोर्ड नही कर सकती थी..आखिर परिवार और मरीजों की जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी..

उस दिन बिजली की कड़क और बादलों की गड़गड़ाहट से जाने क्यों डर लग रहा था..हर कड़क के साथ दिल उछल कर बाहर आ जाता..

अचानक!!दिल धक्क से मानो थम गया था..एक आदमकद साया लड़खड़ाता हुआ गाड़ी के सामने आकर खड़ा हो गया..वो गाड़ी को रुकने का इशारा कर रहा था..

गौर से देखा तो बारिश में भीगती एक लड़की थी..

..लडक़ी??इस समय यहां?क्या?क्यों? बहुत से सवाल खुद से पूछ डाले थे..ये जानते हुए भी की जवाब नही जानती थी मैं..

गाड़ी रोकू या ना रोकू..ये सोचते सोचते पैर ब्रेक तक जा चुके थे..अंदर से ही लड़की को गाड़ी में आने का इशारा किया।

वो लड़खड़ाती हुई आई और दरवाजा खोल कर धम्म से सीट पर लुढ़क गई..वो दबी दबी सिसकियां भर रही थी...और मैं ये सोच रही थी कि सारी सीट गीली हो चुकी है..गाड़ी सर्विस में देनी होगी।

पीछे देखना सम्भव नही था क्योंकि नजर रखने के बाद भी आगे का रास्ता साफ नही दिख रहा था।

मैंने उसकी सिसकियों को इग्नोर करते हुए पूछा"कहाँ उतार दु आपको"?

"ज..जी..किसी क्लिनिक या हॉस्पिटल"?

ये सुनते ही मेरे अंदर की डॉक्टर ने मजबूर किया कि मैं जानकारी लू

"क्या हुआ"?मैंने मिरर से पीछे देखते हुए कहा

"रेप"वो दबे शब्दो मे बोली और सिसकने लगी

ये सुनते ही गाड़ी के ब्रेक खुद ब खुद लग गए..मैंने पीछे घूमते हुए पहली बार उसे गौर से देखा

वो युवा थी..देखने मे ठीक ठाक..खास खूबसूरत नही..पर उसका भीगा हुआ शरीर किसी को भी "वो लड़की भीगी भागी सी"गाने की याद दिला सकता था

कपड़े सही सलामत थे,खरोंच के निशान भी नही फिर??

"रेप मतलब?कब कैसे कहाँ"?मैंने गहराई से उसे देखते हुए पूछा

"मैं यही पास की बिस्किट फैक्ट्री में काम करती हूं, रोज 6 बजे निकलती थी यहां से ऑटो या रिक्शा लेकर घर जाती थी..करीब एक महीने पहले मुझे ऑटो, रिक्शा का इंतजार करते करते 7 बज गये.. तभी 3-4 सड़कछाप लड़को ने मुझे घेर लिया..वो लगातार बदतमीजी कर रहे थे..मैं रुआंसी हो गयी थी..."

इतना बोलते बोलते लड़की की सांस फूलने लगी..मैंने भी गाड़ी स्टार्ट की..उसने अपनी सांसो को एकत्रित किया और बोलना शुरू किया

"तभी एक सफेद कार आकर रुकी,उसमे एक आदमी बैठा हुआ था..उसने मुझसे कहा कि मैं गाड़ी में बैठ जाऊ..देखने मे वो बहुत सज्जन लगे और मैं बैठ गयी..पता चला कि वो "आदर्श हॉस्पिटल" में बच्चो के डॉक्टर है..."

उसके इतना बोलते ही मेरी गाड़ी का संतुलन बिगड़ गया..दिलो दिमाग मे तूफान उठने लगा..'आदर्श हॉस्पिटल ??बच्चो का डॉक्टर??" मतलब संजय?मेरे पति..

आंखों के आगे पिछले एक महीने की घटनाएं घूम गयी..एक महीने से संजय का लेट घर आना..कभी कभी बेकरी के बिस्किट लाना..उफ्फ मतलब संजय ने...?

लड़की की हालत खराब हो रही थी..वो बड़बड़ा रही थी.. "वो रोज़ मुझे घर छोड़ते..कभी कुछ नही कहा..आज गाड़ी देखकर मैं रो..ज..ज की तर..र..हह.. बैठ गई..ल..लेकिन...आ..ज..ज.."

इतना कहते कहते लड़की बेहोश गई

और.. और मैं..मैं भावनायों के अंधड़ में झूल रही थी.. चींख चींख कर रोने का मन कर रहा था..लेकिन आवाज थी कि कहीं गहराइयों में दफन सी हो गई थी.. दिल दिमाग कुछ भी इस बात पर यकीन करने को तैयार नही था..संजय एक परफेक्ट डॉक्टर ही नही..परफेक्ट पति और पिता है..फिर ये सब? 

हो सकता है कोई गलतफहमी हो..पर कैसे सिरे जोड़ दु की कहानी मेरे विश्वास के अनुसार पलट जाए..

अब बाहर का तूफान मेरे अंदर मचे तूफान के सामने कुछ नही था..क्या करूँ?

इस लड़की को वापस हॉस्पिटल ले जाना चाहिए या यही छोड़ दु रास्ते पर?..पुलिस में संजय का नाम लिया तो मेरा घर बर्बाद हो जाएगा..मेरे अंदर की समाजसुधारक महिला एक माँ और पत्नी के सामने कमजोर हो गई थी..

यहाँ रास्ते मे छोड़ा तो.कहीं दूसरे भेड़िये..इसे ना नोच खाये.. भेड़िये..वो अंकल भी तो भेड़िये की कहानी सुनाते हुए मुझे नोचते थे..जब माँ से उनकी शिकायत की थी तो कैसे माँ चंडी का रूप धर उनके घर पहुंची थी..ल..लेकिन अंकल के पक्ष में दिए आंटी के तर्क माँ और मेरी बातों से वजनदार निकले.. माँ के चरित्र पर उंगली उठा दी गई.. अपने पति को जो छोड़ दिया था उन्होंने..

मिरर में वापस उस लड़की को देखा.. खुद को भी देखा..मैं मिरर में थी ही नही..वहीं आंटी थी..मम्मी पर उंगली उठाती.. उस एक पल में निर्णय हो गया था।

मैंने तेजी से गाड़ी हॉस्पिटल की तरफ मोड़ दी..

हॉस्पिटल पहुंचने से पहले स्टाफ को सब तैयारी करने को कहा..जाते ही लड़की को इमरजेंसी में शिफ्ट कर दिया गया..मैंने स्टाफ में कुछ विश्वासपात्र लोगो को लेकर लड़की का चेकअप किया।

पुलिस को खबर भी दे दी..सारी रिपोर्ट्स लिखकर पुलिस में सौंपने को तैयार कर ली थी।

और अब..अब मैं घर जा रही थी..उस इंसान का सामना करने जिससे मुझे अब नफरत थी सिर्फ नफरत..

घर पहुंचकर गाड़ी को बेतरतीब खड़ा कर मैं कांपते पैरो के साथ अंदर पहुंची..वो इंसान टीवी के सामने बैठा पॉपकॉर्न खा रहा था..इतने जघन्य अपराध के बाद कोई इतना सामान्य कैसे रह सकता है?

मैंने भरसक कोशिश की.. बहुत सी भूमिकाएं तैयार की थी रास्ते मे लेकिन संजय को सामने बैठा देख मैं फट पड़ी..

"आज क्या किया तुमने?"मैंने कांपते शरीर के साथ चिल्लाकर पूछा

संजय ने हैरानी से मुझे देखते हुए पॉपकॉर्न नीचे रख दिए.. नफरत है मुझे ऐसे लोगो से..इतना सामान्य होने का नाटक कोई कैसे कर सकता है?

"क्या हुआ भारती?ऐसे क्यों"?

"तुमने क्या किया आज?मुझे जवाब दो..हॉस्पिटल से निकल कर कहाँ गए थे"?मैं पहले से भी तेज चिल्लाई

अब संजय अपनी जगह से खड़े हो चुके थे।

"क्या बात है?तुम ऐसे क्यों बर्ताव कर रही हो"?

"सवाल पूछना बन्द करो..सिर्फ जवाब दो"मैंने दांतो को भींचते हुए कहा

"ओके..ओके बैठ जाओ.. अनीश अभी सोया है..मैं हॉस्पिटल से घर ही आया हूं"

"झूठ..झूठ..सच बोलो संजय..तुम्हारे मुँह से सच सुनना है मुझे सिर्फ सच"

"मैं सच ही बोल रहा हूं..मैं और डॉक्टर प्रसाद अपनी अपनी गाड़ी में साथ मे निकले थे..रास्ते मे देखा की डॉक्टर प्रसाद सड़क पर खड़े थे..उन्होंने बताया कि उनकी गाड़ी खराब हो गई है.. तो मैंने उन्हें लिफ्ट दी..मुझे कुछ सामान लेना था बस वो लेने मैं रास्ते मे उतर गया..डॉक्टर प्रसाद को मैंने बोला कि वो गाड़ी ले जाए उनका घर दूर है..मैं ऑटो से वापस आ गया.."

इतना सुनते सुनते मुझे बेहोशी आने लगीं.. संजय ने मुझे सम्भालते हुए बिस्तर पर बिठाया..

"भारती हुआ क्या है?तुम्हारी तबीयत तो ठीक है"?

"तुम किसी लड़की को रोज उसके घर छोड़ते थे"?मैंने अब भी अविश्वास से संजय को देखते हुए कहा

"हां लेकिन तुम्हे कैसे पता?बेचारी को कुछ लोग परेशान करते थे तो मैं घर छोड़ देता था..गरीब लड़की थी बदले में अपनी कम्पनी के बिस्किट दे देती थी कभी कभी.."

"मुझे कभी नही बताया"

"बताना क्या.. बस गाड़ी में बिठाया और छोड़ दिया..अब बताओ कि क्या हुआ"?

"उसके साथ रेप हुआ है..और.."मैंने एक ही सांस में संजय में सब कह डाला

"ओह माई गॉड..वो हरामी प्रसाद..तभी वो फ़ोन नही उठा रहा..गाड़ी देने भी नही आया..उसने कहा था कि रास्ते से वो उस लड़की को उसके घर छोड़ देगा..और.. और..उसने ये किया..

मैं अचानक बेजान शरीर के साथ संजय की बाहों में गिर गई.. खूब रोई खूब रोई..मेरे मन.. मेरी आत्मा से एक बोझ उतर गया था।

"एक मिनट.. एक मिनट..तुमने क्या सोचा था कि मैने"

मैं कोई भी जवाब देने की स्थिति में नही थी.. बस इतना बोल पाई"हॉस्पिटल चलो तुरन्त, मैंने पुलिस को इन्फॉर्म कर दिया था..लडक़ी को भी होश आ गया होगा"

"अरे रे मेरी रानी लक्ष्मीबाई.. मतलब आज मुझे जेल भेजने का इंतजाम किया था तुमने"

मैं मुस्कुराई और फिर संजय के सीने से लगकर रोने लगी।

हम दोनों हॉस्पिटल पहुँचे, पुलिस बयान ले चुकी थी..लडक़ी ने गाड़ी को देख रोज की तरह हाथ से इशारा किया था....डॉक्टर प्रसाद को उसने पहले भी दो बार संजय के साथ देखा था..साथ ही जब प्रसाद ने उससे कहा कि डॉक्टर संजय ने उसे भेजा है..तो वो निडर होकर बैठ गई.. फिर डॉक्टर प्रसाद ने उन्हें एक कोल्डड्रिंक दी..उसके बाद जब उसे होश आया वो सड़क के किनारे पड़ी हुई थी..और उसकी दुनिया लुट चुकी थी..

रिपोर्ट्स में रेप की पुष्टि हुई थी.. पुलिस ने डॉक्टर प्रसाद को उसके घर से धर दबोचा था..प्रसाद ने माना कि सब कुछ उसने प्लान किया था..उस दिन डॉक्टर संजय ने उससे कहा था कि उन्हें मार्किट से कुछ सामान लेना है..वो जानता था कि संजय उस लड़की को रोज घर छोड़ते है..उसने गाड़ी खराब होने का नाटक किया..फिर संजय को बोला कि उसे मार्किट जाना है तो वो जा सकता है लड़की को घर वो छोड़ देगा..सब कुछ प्लान के मुताबिक हुआ था..बस लड़की हिम्मत वाली निकली.चुप होने की बजाय हॉस्पिटल चली आई..

पुलिस ने डॉक्टर प्रसाद को कस्टडी में ले लिया था..लड़की पहले से बेहतर थी..

सुबह के 5 बज चुके थे..नया सूर्योदय हुआ था..आकाश में भी और भारती के जीवन मे भी..

ये बारिश ये तूफान वो जीवन भर नही भूलने वाली थी..कुछ घण्टो में दुख, नफरत, प्यार, सुकून, सारी भावनाओं का चरम उसने छुआ था।

वापस जाते हुए FM पर मानसून के गाने चल रहे थे..एक लड़की भीगी भागी सी..सोती रातो में...

वो मुस्कुरा दी.ये गाना हमेशा उसे इस रोमांचक रात की याद दिलाएगा..जीवन भर..




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